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June 27, 2025 6:15 pm

उधवा पक्षी आश्रयणी पतौडा़ झील में जाड़े के मौसम में आते हैं,विभिन्न प्रजातियां के हजारों प्रवासी पक्षी

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ऐतिहासिक स्थल के रूप से विश्व प्रसिद्ध

कश्मीर के डल झील के तर्ज पर किया गया शिकारा नौका का परिचालन शुरू

फोटो।
झारखंड की हकीकत

जयराम मंडल

उधवा।साहेबगंज जिले के उधवा स्थित पतौडा़ झील जो गंगा नदी से लगी हुई है। घने वन क्षेत्र और ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरा यह क्षेत्र अपने अद्भुत सौंदर्य और ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों के कारण विश्व में प्रसिद्ध है। एक ओर मनोहारी दृश्य और दूसरी और वनस्पति जीवाश्म के अवशेष की प्रचुरता इस क्षेत्र को खास बनाती है। प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहरों की बहुलता के साथ ही साथ यह स्थान धार्मिक पर्यटन स्थलों से भी परिपूर्ण है।उधवा झील पक्षी आश्रयणी झारखंड और बिहार में अवस्थित एकमात्र पक्षी आश्रयणी है,जिसे 1991 में तत्कालीन बिहार सरकार ने पक्षी झील आश्रयणी घोषित किया गया। यह साहेबगंज जिला मुख्यालय से 42 एवं प्रखंड मुख्यालय उधवा से लगभग 2 किलोमीटर एनएच-80 से एक किलोमीटर उत्तर-पश्चिम पर अवस्थित है। यह झील 565 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है। दो झील पतौड़ा और ब्रह्म जमालपुर के मेल से इस झील का निर्माण हुआ है।

दो झीलों से बना है पक्षी आश्रयणी

पतौड़ा झील लगभग 155 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला और 2 मीटर गहरा झील है, सालों भर उधवा नाले के माध्यम से गंगा नदी का पानी मिलता है। दूसरी ओर ब्रम्हा जमालपुर झील जो 410 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है। ब्रम्हा जमालपुर झील को बढ़ैल या बड़का झील के नाम से भी जाना जाता है।जाड़े और बरसात के मौसम में बढ़ैल और पतौड़ा झील आपस में जुड़ जाते हैं।साल के 9 महीनों में इन झीलों में पर्याप्त मात्रा में पानी होता है। कई प्रवासी और अप्रवासी पक्षी यहां जलक्रीड़ा करते हैं।

झील के चारों ओर बसे हैं कई गांव

झील के चारों ओर कई गांव बसे हैं। जहां पहाड़ियां और खेत हैं। खेती बाड़ी तथा पशुपालन कर यहां के निवासी अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं।गर्मियों में जब झील का पानी सूख जाता है या बहुत कम हो जाता है।

जाड़े में हजारों की संख्या में झील आते हैं प्रवासी पक्षी

मध्य एशिया से दिसंबर और मार्च के महीने में कई प्रवासी पक्षी आते हैं। जो यहां की छटा में चार चांद लगा देती हैं । मुख्य रूप से स्पूनबिल, एकरेट, जगाना, किंगफिशर, गोल्डन ऑरियो ,बैकटेल, ग्रेट आउल, हेरोइ्न् और स्ट्रोक जैसे प्रवासी पक्षियों के साथ-साथ बत्तख और कोरमोनेंटस काफी संख्या में यहां देखे जा सकते हैं। यहां जल सतह पर दिखाई देने वाले पक्षी हैं सामुद्रिक, जलमोर, चैती, पनकौवा,डेबचिक, बानकर इत्यादि हैं। कीचड़ वाले किनारों पर टिटिहरी, बटान, खंजन, बगुला, आंजन, दाबिल, लकलक,और धोबैचा पक्षी दिखाई देते हैं।खुले एवं घास के मैदान के पक्षियों में कबूतर, बगेरी, पतेना, गौरैया, मैना, चचरी और बुलबुल हैं। यहां मैना की 6 प्रजातियां अबलखा, भारतीय मैना, चही या दरिया मैना, पहाड़ी मैना, ब्राह्मणी एवं धसूर-सिलाखी मैना पाई जाती है। शिकारी पक्षियों में कुररी , चील, मछलीमार, उकाब, बाज और गिद्ध प्रमुख हैं। घरेलू एवं खजूर पेड़ वाली बता सी कौडिल्ला, ड्राओंगो, नीलकंठ और ढेलहरा तोता आदि भी यहां आम तौर पर पाए जाते हैं। यहां शीतकाल के प्रवासी पक्षियों में धोमरा, मेरवा, छोटा बटान, टिमटिमा चुपका, छोटा पनलावा, धोबना, हुसैनी पिड्दा अबाबील आदि प्रमुख हैं।
लगभग 83 प्रजातियों के प्रवासी और अप्रवासी पक्षी पाए जाते हैं जिनमें से कई दुर्लभ है।हरी-भरी वादियों में विचरते खूबसूरत पक्षियों ने भी इस पर्यटन स्थल को अपने लिए चुना है। जहां स्वच्छ वातावरण में यह सुकून से उड़ते और तैरते हैं। वहीं गर्मियों के मौसम में प्रवासी पक्षी वापस शीतोष्ण प्रदेश प्रवास कर जाते हैं।

पर्यटन स्थल के रूप में विश्व मानचित्र पर लाने का हो रहा है प्रयास

इधर उधवा पक्षी आश्रयणी को सरकार की ओर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं, और पर्यटक को लुभाने के लिए कश्मीर की डल झील के तर्ज पर शिकारा नौका का परिचालन शुरू किया गया है।उधवा पक्षी अभ्यारण्य झील के सौन्दर्यकरण के लिए चार योजनाओं का शिलान्यास किया गया है, जिसमें वन विश्राम गृह,फेबर ब्लाक सड़क का निर्माण, वाच टावर और प्रकृति व्याख्या केंद्र का निर्माण कार्य का शिलान्यास किया गया है। ताकि उधवा अभ्यारण्य पक्षी झील को राष्ट्रीय मानचित्र पर पहचान दिलाया जा सके।हांलांकि झील की गहराई एवं पर्याप्त पानी नहीं होने से पर्यटकों के लिए अभी कुछ समस्याएं बनी रहेगी। जिसपर सरकार एवं प्रशासन को इसपर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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