परशुराम-लक्ष्मण संवाद ने मोहा मन
पाकुड़ | श्रीरामकथा महोत्सव के छठे दिन हरीणडंगा हाई स्कूल मैदान रामभक्ति की गूंज से गूंज उठा। कथा व्यास परम श्रद्धेय पारसमणि महाराज की मधुर वाणी में श्रीराम-सीता विवाह प्रसंग सुन श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। कथा के मुख्य आकर्षण में सीता स्वयंवर, राम-सीता का प्रथम मिलन, परशुराम-लक्ष्मण संवाद और बनवास प्रसंग शामिल रहा। कथा में महाराज ने बताया कि जब राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुंचे, तब पुष्पवाटिका में राम-सीता की पहली मुलाकात हुई। दोनों की दृष्टि मिली और हृदयों का संगम हुआ। सीता ने गौरी पूजन कर राम को अपने अंतर्मन में स्थान दिया। यह मिलन भक्तों के लिए दिव्य अनुभूति बन गया। कथा में तुलसीदास द्वारा वर्णित भक्ति के पांच स्वरूपों – चातक, कोकिल, कीर, चकोर और मोर – का सुंदर वर्णन किया गया। चातक भक्ति को सबसे श्रेष्ठ बताया गया, जो केवल एक ही जल (राम नाम) की प्रतीक्षा करता है। यह वर्णन सुन श्रद्धालु भक्ति की गहराइयों में डूबते चले गए।
अहंकार को दर्शाया गया परशुराम-लक्ष्मण संवाद में
लक्ष्मण और परशुराम के बीच हुए संवाद का उल्लेख करते हुए व्यास जी ने कहा, “अहंकार जब मनुष्य पर सवार होता है तो विवेक नष्ट हो जाता है। तब ईश्वर स्वयं आकर भक्त के भीतर के घमंड को तोड़ते हैं।” यह प्रसंग श्रोताओं को आत्ममंथन के लिए प्रेरित कर गया।
स्वयंवर से विदाई और फिर बनवास तक का भावुक चित्रण।
कथा के अंत में सीता स्वयंवर की अद्भुत झांकी प्रस्तुत की गई, जिसमें भगवान राम द्वारा शिव धनुष को तोड़ना और जनकपुरी में विवाहोत्सव का उल्लास सुनाया गया। इसके बाद वनवास की पीड़ा ने माहौल को भावुक कर दिया।
