राजकुमार भगत
पाकुड़। व्याहुत समाज में विवाह की शुरुआत भगवान बलभद्र के आशीर्वाद से होती है। समाज के लोग इन्हें कुलदेवता मानते हैं और इनके सम्मान में विशेष परंपराएं निभाई जाती हैं। मान्यता के अनुसार, बलभद्र जी श्रीकृष्ण और सुभद्रा के भाई थे। कथा है कि सुभद्रा का विवाह बलभद्र जी की असहमति के बावजूद परिवार ने करा दिया, जिससे वे नाराज होकर भोजन-पानी त्याग बैठे। बाद में परिवार ने उन्हें समझाया कि वर योग्य है। इसके बाद बलभद्र जी ने आशीर्वाद देकर विवाह संपन्न कराया। तभी से ‘बलभद्र मनावन’ की परंपरा शुरू हुई, ताकि शादी बिना किसी विघ्न के सम्पन्न हो। रस्मों के तहत सबसे पहले महिलाएं कुम्हार के घर से बलभद्र जी की प्रतिमा लेकर आती हैं। इसके बाद परिवार के पांच सदस्य भोजन करते हैं, जिसे कोहरत का भात कहा जाता है। फिर इमलीघोटाई की रस्म होती है, जिसमें पान का पत्ता खिलाकर बलभद्र जी से जुरैनी यानी खुश होने की पुष्टि ली जाती है। यह सब कुलदेवता के आशीर्वाद और विवाह की सफलता के लिए किया जाता है।