पाकुड़ | सत्य की विजय और आसुरी शक्तियों के अंत का पर्व महानवरात्रि बुधवार को श्रद्धा-भक्ति के साथ संपन्न हो गया। अंतिम दिन भक्तों ने मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना, कन्या पूजन व हवन कर पुण्य लाभ अर्जित किया। पूजा-हवन के साथ ही अब भक्तों ने अपना व्रत तोड़ना शुरू कर दिया है। हालांकि कई श्रद्धालु दशमी तिथि या कलश विसर्जन के बाद ही व्रत खोलते हैं।
मां सिद्धिदात्री को अर्पित हुआ हलवा-पूरी व चना
अश्विन मास की महा नवमी पर मां भगवती सिद्धिदात्री की पूजा आटे के हलवे-पूरी, काले चने, खीर और सफेद मिष्ठान्न से की गई। धूप-दीप, अक्षत, चंदन और पंचामृत अर्पित कर विधि-विधान के साथ आराधना की गई। मान्यता है कि इस दिन साधक अपने व्रत, जप और तप से मां का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
नवदुर्गा स्वरूप कन्याओं का पूजन
नवमी पर परंपरागत रूप से 2 वर्ष से 10 वर्ष की नव कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजन कराया गया। कन्याओं को आदरपूर्वक आसन पर बैठाकर हलवा-पूरी, खीर, काले चने और मिष्ठान्न का भोग परोसा गया। साथ ही एक बालक को भैरव बाबा का स्वरूप मानकर पूजन किया गया। भोजन और दक्षिणा प्राप्त करने के बाद कन्याओं ने साधकों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिया।
सेवा और समर्पण का प्रतीक है कन्या पूजन
कन्या पूजन सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि करुणा, सेवा और समर्पण का पर्व है। मान्यता है कि यह अनुष्ठान नौ ग्रहों को शांत करता है और परिवार में सुख-शांति एवं समृद्धि का आशीर्वाद लेकर आता है।
हवन-आरती और कलश विसर्जन के साथ समापन
कन्या पूजन के बाद मां के नौ स्वरूपों का हवन हुआ। कलश का विसर्जन कर देवी-देवताओं को यथास्थान विदा किया गया और अगले वर्ष पुनः हंसी-खुशी के साथ मां की आगमन की कामना की गई। चूंकि गुरुवार को दशमी तिथि है, इसलिए मूर्ति विसर्जन शुक्रवार को होगा। मां रानी सभी भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करें। माता रानी की जय!
