सरकारी नियमों के दायरे में खनन, ग्रामीण बोले — ब्लास्टिंग पर वर्षों से रोक
पाकुड़: मालपहाड़ी क्षेत्र में हाल के दिनों में हैवी ब्लास्टिंग को लेकर फैली खबरें न तो तथ्यों पर आधारित हैं और न ही जांच की कसौटी पर खरी उतरती हैं। मौके पर स्थिति कुछ और ही कहानी कहती है — एक ऐसी कहानी, जिसमें ग्रामीणों की सहमति, पारदर्शी खनन व्यवस्था और प्रशासनिक निगरानी की भूमिका साफ झलकती है।स्थानीय स्तर पर बीते कई वर्षों से हैवी ब्लास्टिंग पर पूर्ण प्रतिबंध है। यह निर्णय गांव की सामूहिक बैठक में लिया गया था, जिसमें ग्राम प्रधान और ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा था कि खनन कार्य तभी होगा जब पर्यावरण और आमजन पर उसका कोई विपरीत असर न पड़े। आज भी यह नियम अक्षरशः लागू है।क्षेत्र के व्यवसायी केवल छोटे मशीनों से सीमित खनन करते हैं। किसी भी तरह की विस्फोटक गतिविधि पर स्थानीय पंचायत की सख्त निगरानी रहती है। अगर कोई व्यापारी नियमों का उल्लंघन करता है, तो गांव की ओर से भारी आर्थिक दंड लगाया जाता है। शायद यही कारण है कि वर्षों से यहां शांति और अनुशासन बना हुआ है।खनन की प्रक्रिया भी पारदर्शी है। संबंधित खदानों की अनुमति अंचल अधिकारी की रिपोर्ट और खनन विभाग की स्वीकृति के बाद ही दी जाती है। इस दौरान सरकारी शर्तों और पर्यावरणीय दिशा-निर्देशों का पालन अनिवार्य रूप से किया जाता है।हाल में एक वृद्ध की मृत्यु की घटना को लेकर कुछ लोगों ने इसे ब्लास्टिंग से जोड़ने की कोशिश की थी। परंतु जांच में यह दावा झूठा साबित हुआ। मृतक के परिजनों ने थाने में लिखित बयान दिया कि मौत घर की जर्जर दीवार गिरने से हुई थी, न कि किसी खदान गतिविधि से। उल्लेखनीय है कि घटना स्थल और खदान के बीच लगभग तीन किलोमीटर की दूरी है।व्यवसायियों का कहना है कि वे सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप काम कर रहे हैं। खनन विभाग की टीम समय-समय पर निरीक्षण करती है और अब तक सभी खदानें नियमों के अनुरूप पाई गई हैं। बावजूद इसके, कुछ स्थानीय तत्व व्यक्तिगत रंजिश के कारण गलत सूचनाएं फैला रहे हैं।व्यवसायियों ने यह भी कहा कि झूठी रिपोर्टिंग से न केवल पत्थर उद्योग की साख को ठेस पहुंचती है, बल्कि सरकार के राजस्व और क्षेत्रीय विकास पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।मालपहाड़ी की हकीकत यही है यहां खनन कार्य न तो बेतरतीब है, न अनियंत्रित। यह पूरी तरह ग्रामीण सहमति, प्रशासनिक पारदर्शिता और नियमों की सीमा में बंधा हुआ है।