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October 20, 2025 12:42 am

सोमवार की मध्यरात्रि तांत्रिक विधि से होगी मां काली की पूजा।

राजघराने की परंपरा, सैकड़ों पाठा बलि, अमावस्या रात को भक्तों की उमड़ेगी श्रद्धा

राजकुमार भगत

पाकुड़। सोमवार की मध्य रात्रि काली पूजा को लेकर जिलेभर में उत्साह और उमंग का माहौल है। पाकुड़ के राजा पाड़ा स्थित नित्य काली मंदिर और काली तल्ला स्थित श्मशान काली पूजा में हर साल की तरह इस बार भी राज परिवार की परंपरा अनुसार तांत्रिक विधि से पूजा की जाएगी। पूजा में सैकड़ों पाठा बलि दी जाएगी। श्मशान काली पूजा स्थल पर ताड़ के पत्तों और पुष्पों से मंदिर का स्वरूप बनाया जाता है। मिट्टी की प्रतिमा की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है। पूजा के बाद संध्या में मां काली की प्रतिमा का काली भाषण तालाब में विसर्जन किया जाता है। प्रतिमा को भक्त कंधों पर लेकर तालाब तक पहुंचते हैं।
वहीं नित्य काली मंदिर में पंडित भारत भूषण के नेतृत्व में स्थायी प्रतिमा की नियमित पूजा-अर्चना होती है। अमावस्या की रात यहां विशेष तांत्रिक पूजा की जाती है और पाठा बलि दी जाती है।

काली तल्ला और काली भाषण नाम के पीछे की कथा

श्मशान काली पूजा का इतिहास बेहद प्राचीन है। पहले यह पूजा लिट्टीपाड़ा प्रखंड के पहाड़िया साफा होड़ समुदाय द्वारा की जाती थी। बाद में इसे पाकुड़ स्थानांतरित किया गया। उस समय यह स्थान सुनसान श्मशान क्षेत्र था, जहां पूजा आरंभ होने के बाद जगह का नाम काली तल्ला पड़ा। पूजा के उपरांत राजघराने के तालाब में मां काली की प्रतिमा का विसर्जन होता था, जिससे वह तालाब काली भाषण तालाब के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज भी यह परंपरा उसी श्रद्धा से निभाई जाती है।

तांत्रिक विधि से पूजा का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर दोपहर 1:14 बजे से 21 अक्टूबर दोपहर 3:24 बजे तक रहेगी। मां काली की पूजा निशीथ काल में सोमवार रात 11:41 बजे आरंभ होगी।
मान्यता है कि अमावस्या की रात तांत्रिक विधि से मां काली की उपासना करने से धन, बुद्धि, स्वास्थ्य और शौर्य की प्राप्ति होती है तथा नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

मेले में उमड़ती है भीड़, बच्चों में रहता उत्साह

काली तल्ला में इस अवसर पर हर साल मेले का आयोजन किया जाता है। जिले और आसपास के इलाकों से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मेले में झूले, खिलौने, चाट-पकौड़ी और प्रसाद की दुकानें सजती हैं। बच्चे विशेष रूप से उत्साहित रहते हैं। कहते हैं कि यहां मां काली के महाभक्त बामाखेपा ने भी साधना की थी। इसी कारण यह स्थान सिद्धपीठ माना जाता है।

मां काली और राजघराने का गहरा नाता

नित्य काली मंदिर और श्मशान काली पूजा दोनों का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा है। इसका निर्माण सन 1737 ईस्वी में राजा पृथ्वीचंद शाही ने कराया था।
कथा के अनुसार, राजा को स्वप्न में मां काली ने आदेश दिया था कि वे एक विशेष तालाब से शीला निकालकर उससे प्रतिमा बनवाएं और प्रतिदिन पूजा करें। राजा ने आदेश का पालन किया और उसी रात भगवान विश्वकर्मा ने उस शिलाखंड पर मां काली की मूर्ति का स्वरूप दिया। तब से यह परंपरा लगातार जारी है।

अन्य मंदिरों में भी होगी विशेष पूजा

मुख्य पूजा स्थलों के अलावा बालकेशरी काली मंदिर, मध्यपाड़ा स्थित खेपा काली मंदिर और ग्वालपाड़ा आनंदमयी मंदिर में भी विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी। अमावस्या की रात भक्त मां काली को प्रसाद अर्पित करेंगे और रात्रि भर भक्ति संगीत गूंजता रहेगा।

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