पाकुड़ में कोयला परिवहन व्यवस्था में स्थानीय गाड़ी मालिक बेहाल, कंपनी की मनमानी और प्रशासन की सुस्ती का असर सीधे पेट और जेब पर।
पाकुड़ में कोयला परिवहन इन दिनों अव्यवस्था और मनमानी का ऐसा शिकार हुआ है स्थानीय गाड़ी मालिकों की रोज़ी-रोटी पर सीधा संकट खड़ा हो गया है। घंटों घंटों तक सड़क जाम रहने और कोयला कंपनी की कथित मनमानी, चुनिंदा ट्रांसपोर्टरों का दबदबा और जिला व पुलिस प्रशासन की सुस्ती—सभी ने मिलकर हालात को और बिगाड़ दिया है। सबसे बड़ा संकट सड़क पर लगने वाला लगातार जाम है, जिसने स्थानीय परिवहन व्यवसाय को तहस-नहस कर दिया है। नाम न छापने की शर्त पर कई गाड़ी मालिकों ने बताया कि महीने में मुश्किल से 30–35 ट्रिप हो पा रहे हैं, जिससे महीने की किस्त तक निकालना संभव नहीं रह गया है। ड्राइवर–खलासी का वेतन, गाड़ी की सर्विसिंग और मेंटेनेंस—all pending. कर्ज बढ़ता जा रहा है, कई गाड़ी मालिक गाड़ियां बेच चुके हैं, जबकि कई मजबूरी में दूसरे राज्यों में जाकर काम करने को विवश हैं।
गाड़ी मालिकों की सबसे बड़ी पीड़ा है सड़क पर लगने वाला जाम। कई-कई घंटे लाइन में फंसे रहने के कारण दिनभर में एक ट्रिप भी मुश्किल से हो पाती है। इस दौरान चोरी की घटनाएं भी आम हो गई हैं। जाम का फायदा उठाकर झुंड बनाकर चोर बैटरी, डीज़ल, स्टेपनी, जैक, रोड और अन्य सामान उड़ा ले जाते हैं, और बाद में वही सामान दलालों के जरिये गाड़ी मालिकों को ही बेचा जाता है। विडंबना यह कि जिम्मेदार सब कुछ जानते हुए भी कार्रवाई से दूरी बनाए रखती है। स्थानीय गाड़ी मालिकों का आरोप है कि कोयला कंपनी जानबूझकर बाहरी गाड़ियों को बढ़ावा दे रही है ताकि स्थानीय लोगों की आर्थिक निर्भरता कमजोर हो और वे कंपनी के खिलाफ आवाज न उठा सकें। कंपनी की यह नीति स्थानीय रोजगार पर सीधा प्रहार है।
गाड़ी मालिकों का कहना है— हालत इतनी बदतर है कि परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। जाम, चोरी, मनमानी और प्रशासन की चुप्पी ने हमें बर्बाद कर दिया है। अगर यही हाल रहा तो बाहर के लोग मस्ती करेंगे और हम स्थानीय लोग बस तमाशा देखते रह जाएंगे। पाकुड़ के कोयला परिवहन तंत्र की यह जर्जर व्यवस्था अब स्थानीय लोगों के सब्र का बांध तोड़ रही है। सवाल उठ रहा है—
क्या प्रशासन जागेगा, या फिर स्थानीय परिवहन उद्योग इस अव्यवस्था की भेंट चढ़ता रहेगा? हालांकि यह खबर संवादाता की निजी ग्राउंड रिपोर्ट है।











