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पटना. बिहार विधानसभा में नीतीश सरकार ने जाति सर्वे की सामाजिक-आर्थिक रिपोर्ट पेश कर दी. इस रिपोर्ट के पेश होने के साथ ही बिहार में सियासी हलचलें तेज हो गई हैं. बिहार में नीतीश-तेजस्वी के ‘मंडल-II’ को क्या बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड रोक सकेगा. अब इसकी चर्चा होने लगी है. हालांकि नीतीश सरकार की ओर से विधान सभा में पेश की गई रिपोर्ट ने समाज के जातीय विभाजन के साथ ही इस बात को भी साफ कर दिया है कि गरीबी का संबंध जाति से है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के 2,76,68,930 परिवारों में लगभग एक तिहाई 94,42,786 परिवार गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 86.63 फीसदी परिवार गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं. जबकि अगड़ी जातियों के भी 25.09 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं. इस आंकड़े को पेश करने के बाद बिहार में इंडिया गठबंधन ‘मंडल-II’की तैयारी में जुट गया है. इसी कड़ी में प्रदेश की नीतीश सरकार ने रिजर्वेशन बढ़ाने का प्रस्ताव वाला बिल भी विधानसभा में पारित कर दिया. राज्यपाल ने भी इस बिल पर अपनी मंजूरी दे दी है.
नीतीश सरकार ने चलाया ब्रह्मास्त्र
चुनावी इस सीजन में नीतीश सरकार की इस पहल ने देश की राजनीति का मिजाज ही बदल दिया है. पत्रकार विनोद ओझा कहते हैं कि नीतीश सरकार ने बिहार में जातिगणना सर्वे के आंकड़े जारी कर अपना राजनीतिक ब्रह्मास्त्र चल दिया है. इस ब्रह्मास्त्र के बाद भाजपा रक्षात्मक मुद्रा में है. क्योंकि यह मंडल 2.0 की सियासत है. मंडल 1.0 में हिंदू समाज को अगड़े-पिछड़ों में बांटा गया था, लेकिन इस सर्वे ने पिछड़ों के अंतर्विभाजन का नया नक्शा पेश कर दिया है. इसका सीधा अर्थ है कि देश की राजनीति अब मंडल-कमंडल से शुरू होकर ओबीसी में ही माइक्रो डिवीजन पॉलिटिक्स का रुख करेगी.
बिहार से नीतीश का चुनावी गणित और समीकरण
जाति जनगणना सबसे पहले बिहार में हुई. इसका कारण है कि बिहार देश का शायद अकेला ऐसा राज्य है, जहां जाति ही सर्वोपरि है. जाति के सवाल पर यहां विकास जैसे मुद्दे अक्सर गौण रहे हैं. आज भी बिहार मानव विकास सूचकांक में देश में सबसे निचले पायदान पर है. रोजगार और अधोसंरचना विकास के अभाव में बिहार के लोग राज्य छोड़कर दूसरे प्रदेश में जा रहे हैं. बिहार में यह कभी मुद्दा नहीं बना है. दिलचस्प बात यह है कि 80 के दशक में बिहार के साथ मप्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश भी बीमारू राज्य की श्रेणी में थे, लेकिन 40 सालों में ये तीनों राज्य विकास की दौड़ में बिहार से बहुत आगे निकल गए. बिहार में अब भी जातियों की गिनती हो रही है. यही कारण है कि नीतीश और तेजस्वी की सरकार ने बिहार में जाति जनगणना सर्वे रिपोर्ट को पहले जारी किया. फिर विधानसभा में सर्वे के आधार पर रिजर्वेशन बढ़ाने के प्रस्ताव वाला बिल को भी विधानसभा में पारित कर दिया.
लोकसभा चुनाव में मुखर होगा यह मुद्दा
नीतीश और तेजस्वी की इस पहल से पीएम नरेंद्र मोदी के जादू और हिंदुत्व पर भी असर पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषक राजीव कुमार कहते हैं कि जातिगणना भले ही बिहार में हुई हो, लेकिन इसका असर दूरगामी होगा. विपक्ष ने दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी के जादू और हिंदुत्व की राजनीति की कमर तोड़ने के लिए यह सब किया है. इसमें अब तो कांग्रेस भी शामिल हो गई है. कांग्रेस मध्यप्रदेश और राजस्थान में जाति जनगणना को ही मुख्य मुद्दा बना लिया है. दरअसल कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के सभी नेताओं की सोच यही है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर काफी हद तक एकजुट हुई हिंदू जातियों को वापस माइक्रो लेवल पर विभाजित करने से नया ध्रुवीकरण बनाया जा सकता है. ऐसा करने पर विपक्ष को एक राजनीतिक स्पेस भी मिलेगा. कहा जा रहा है कि मुद्दा लोकसभा चुनाव में और मुखर होगा.
क्यों परेशान है बीजेपी
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पांच राज्यों के चुनावी अभियान से समय निकालकर छह नवंबर को बिहार आए थे. बिहार के मुजफ्फरपुर में एक जनसभा के दौरान उन्होंने नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव की ‘तुष्टीकरण की नीति’ को लेकर उनपर हमला बोला था. इसके साथ ही अमित शाह ने इस सभा में धर्म के नाम पर विभिन्न हिंदू जातियों को एक रखने की कोशिश करते हुए अयोध्या में बने रहे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेने की बिहार के लोगों से अपील भी की. राजनीतिक पंडित इसे जाति सर्वे से जोड़कर देख रहे हैं.
‘मंडल-II’ का उभार
वर्ष 1990 में तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की थी. इसके बाद पूरे देश में ‘मंडल लहर’ शुरू हो गई थी. इसी मंडल कमीशन का जोरदार समर्थन करके बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह का राजनीतिक उदय हुआ था. इन दोनों नेताओं ने अगड़ी जातियों के ख़िलाफ पिछड़ों को लामबंद कर अपना जनाधार तैयार किया. इधर, लालकृष्ण आडवाणी ने बाबरी मस्जिद के खिलाफ और अयोध्या में उसी जगह पर राम मंदिर के निर्माण के लिए कैम्पेन चलाया. मंडल की राजनीति पर खड़ी हुईं क्षेत्रीय पार्टियों ने लालकृष्ण आडवाणी को हिंदी पट्टी राज्यों में चुनौती दी. इसे ही ज्यादातर लोगों ने ‘मंडल बनाम कमंडल’ की राजनीति के तौर पर जानते हैं. अब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने बिहार में नए भर्ती किए गए शिक्षकों को 1.2 लाख नियुक्ति पत्र सौंपे और फिर इस जोड़ी ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े तबकों के लिए नौकरियों में कोटा बढ़ाकर 75 फीसदी कर दिया. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी के इस फैसले को राजनीतिक विश्लेषक ‘मंडल-II’ का उभार करार दे रही हैं.
(डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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Tags: Caste politics, PATNA NEWS
FIRST PUBLISHED : November 21, 2023, 18:34 IST
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