राजकुमार भगत
पाकुड़। दीपों का महापर्व दीपावली पांच दिनों तक उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाने के बाद गुरुवार को भैया दूज और चित्रगुप्त पूजा के साथ संपन्न हो गया। भाई-बहन के पवित्र प्रेम और स्नेह का यह पर्व पूरे जिले में श्रद्धा, परंपरा और उमंग के साथ मनाया गया।
बहनों ने भाई के माथे पर लगाया तिलक, मांगी दीर्घायु की कामना
सुबह से ही बहनों ने स्नान-ध्यान कर अक्षत, रोली, चंदन, नारियल और मिठाई से सजी पूजा थाल तैयार की। भगवान गणेश की पूजा के बाद बहनों ने उत्तर-पूर्व दिशा में आसन बिछाकर अपने भाइयों का इंतजार किया। भाई जब बहन के घर पहुंचे, तो बहनों ने उनका आदर-सत्कार कर मस्तक पर तिलक लगाया, आरती उतारी और दीप दिखाकर उनके दीर्घायु जीवन की प्रार्थना की। परंपरा अनुसार, बहनों ने भाइयों को मिठाई खिलाई और अपने हाथों से भोजन कराया। बदले में भाइयों ने बहनों की रक्षा का संकल्प लिया और उपहार स्वरूप भेंट दी।
मान्यता, इस दिन तिलक से दूर रहती है अकाल मृत्यु की आशंका
पौराणिक मान्यता है कि भैया दूज के दिन यदि बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर भोजन कराती है, तो उस भाई की अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी दिन यमराज के सचिव चित्रगुप्त की पूजा करने की भी परंपरा है।
सुभद्रा ने किया था भगवान श्रीकृष्ण का तिलक
पुराणों के अनुसार, भैया दूज की परंपरा की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा से मानी जाती है। कहा जाता है कि नरकासुर वध के बाद जब श्रीकृष्ण द्वारका लौटे, तो सुभद्रा ने उनका फूल, फल, मिठाई और दीपों से स्वागत किया और तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी। एक अन्य कथा में कहा गया है कि भगवान यमराज को वरदान मिला था कि जिस दिन कोई बहन यम द्वितीया को अपने भाई को तिलक लगाकर भोजन कराएगी, उसका भाई दीर्घायु और निरोग रहेगा।

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