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July 27, 2025 1:02 pm

“आखिरी सांस तक लड़े… पर हारा नहीं वो जज़्बा: शहीद एसपी बलिहार आज भी जिंदा हैं पाकुड़ की मिट्टी में”

आज से ठीक 12 साल पहले, 2 जुलाई 2013 को जब पूरा राज्य सामान्य दिन मान रहा था, तब नक्सलियों ने एसपी बलिहार को मारने के लिए जाल बिछा रहे थे। धोखे से वो आग बरसाई जिसमें झुलस गया था झारखंड का एक होनहार और जांबाज़ बेटा — शाहिद एसपी अमरजीत बलिहार।

नक्सलियों से लोहा लेते हुए दी शहादत, टूट गए पर झुके नहीं

दुमका में एक आधिकारिक मीटिंग के बाद पाकुड़ लौट रहे एसपी बलिहार और उनकी टीम पर काठीकुंड के जमनीनाला के पास नक्सलियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। अचानक ताबड़तोड़ फायरिंग के बीच एसपी बलिहार और उनके छह बहादुर जवान आखिरी सांस तक लड़ते रहे — पर नक्सलियों की संख्या बल कहीं ज्यादा थी। लोहा लेते हुए शहीद हो गए अमरजीत बलिहार।

शहीद होने वाले अन्य वीर जवान थे:

मनोज हेंब्रम, राजीव कुमार शर्मा, चंदन थापा, संतोष कुमार मंडल, अशोक कुमार श्रीवास्तव। इनमे ड्राइवर धनराज मड़ैया गंभीर रूप से घायल हुए। नक्सली 8 हथियार, 670 राउंड गोलियां और बुलेटप्रूफ जैकेट तक लूट ले गए। चार इंसास राइफल, दो AK-47 और दो पिस्टल उनके हाथ लगे। बाद में सामने आया कि हमले की सूचना आंतरिक गद्दारी के चलते लीक हुई थी। जांच के बाद दो लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई।

नक्सली कांपते थे उनके नाम से

अमरजीत बलिहार का नाम नक्सलियों के लिए खौफ का दूसरा नाम था। जब तक उन्होंने सेवा की, नक्सली चैन की नींद नहीं सो सके। उनकी रणनीति, नेतृत्व और बेखौफ कार्यशैली ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी थी। रात के अंधेरे हो या दिन के उजाले नक्सलियों को ढूंढ ढूंढ कर कानून के शिकंजे में जकड़ते रहे थे अमरजीत बलिहार।

शहीद अमरजीत बलिहार: एक सख्त अफसर, एक सच्चा इंसान

14 अक्टूबर 1960 को जन्मे बलिहार ने एमए और बीएससी करने के बाद 1986 में पुलिस सेवा में कदम रखा। जहानाबाद से करियर की शुरुआत करने वाले बलिहार ने मुंगेर, पटना, राजगीर, लातेहार, चक्रधरपुर और रांची तक अपनी कर्मठता की मिसालें छोड़ीं।
2003 में आईपीएस बने और मई 2013 में पाकुड़ के एसपी के तौर पर पोस्टिंग हुई। शांत स्वभाव, मृदुभाषी व्यक्तित्व के साथ-साथ कानून-व्यवस्था के मामले में बेहद सख्त थे।

बलिहार पार्क में सजग है उनकी प्रतिमा, जो हर साल याद दिलाती है कुर्बानी

पाकुड़ समाहरणालय परिसर में स्थित बलिहार पार्क में लगी उनकी प्रतिमा आज भी साहस की गवाही देती है। हर साल 2 जुलाई को श्रद्धा सुमन अर्पित कर एक मिनट का मौन रखा जाता है। यह केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि नक्सलियों को दिया गया वो संदेश है — कि हम झुकेंगे नहीं।

“बलिहार जैसे अफसर अमर होते हैं… वो मरते नहीं, बस इतिहास बन जाते हैं।”

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