“दरवाज़ा खटखटाओ”, “सिटी बजाओ” से लेकर “बोलेगा पाकुड़” तक… नए रंग में रंगे स्कूल
पाकुड़ जिले में शिक्षा का चेहरा तेजी से बदल रहा है। उपायुक्त मनीष कुमार के नेतृत्व में संचालित प्रोजेक्ट परख 2.0 न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई में धार ला रहा है, बल्कि उनमें आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति की कला भी गढ़ रहा है। पिछले वर्ष जहां जिला माध्यमिक परीक्षा में 22वें पायदान पर था, वहीं इस वर्ष राज्य में दूसरा स्थान हासिल कर इतिहास रच दिया गया। अब “परख” केवल परीक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक और शैक्षणिक आंदोलन बन गया है। ‘बोलेगा पाकुड़’ के तहत छात्र हर दिन प्रार्थना सभा में दो मिनट बोलने का अभ्यास कर रहे हैं, जिससे मंच पर बोलने की झिझक टूट रही है। वहीं ‘बाल चौपाल’ में छात्र-छात्राएं आपस में समूह चर्चा कर रहे हैं — ठीक वैसे जैसे किसी प्रतियोगी परीक्षा में समूह चर्चा होती है। इससे बच्चों की तार्किक सोच और बोलने की शैली में बदलाव देखने को मिल रहा है।
फिर से स्कूल चले हम… दरवाज़ा खटखटाओ, बच्चे स्कूल लाओ!
‘फिर से स्कूल चले हम’ अभियान में शिक्षक, सीआरपी, बीआरपी से लेकर बाल संसद के सदस्य, मुखिया और वार्ड सदस्य तक एकजुट होकर घर-घर दस्तक दे रहे हैं। ‘दरवाज़ा खटखटाओ’ मुहिम के जरिए ऐसे बच्चों को फिर से स्कूल से जोड़ा जा रहा है, जो किसी कारणवश पढ़ाई से दूर हो गए थे।
“सिटी बजाओ” बनी प्रेरणा की सीटी
सुबह-सुबह जब बच्चे सिटी बजाते हुए स्कूल की ओर निकलते हैं, तो गांव की गलियों में शिक्षा की आवाज गूंजती है। यह नजारा अब पाकुड़ के ग्रामीण इलाकों की पहचान बन चुका है। सिटी की आवाज सुनकर अन्य बच्चे भी स्कूल के लिए तैयार हो जाते हैं। यह प्रयोग बाल मनोविज्ञान और नवाचार का अद्भुत उदाहरण है।
पढ़ाई के साथ जन्मदिन का जश्न भी
हर माह की 20 तारीख को अब स्कूलों में बच्चों और शिक्षकों का साझा जन्मदिन मनाया जा रहा है। केक काटा जाता है, पौष्टिक विशेष भोजन परोसा जाता है — जिससे स्कूल का माहौल उत्सवमय बन रहा है और उपस्थिति में भी बढ़ोतरी हो रही है।
एक पेड़ मां के नाम, एक पेड़ बेटी के नाम
शिक्षा के साथ संवेदनशीलता का रंग भी जोड़ा गया है। ‘एक पेड़ मां के नाम’ और ‘एक पेड़ बेटी के नाम’ जैसे अभियानों के जरिए पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सरोकारों की मिसाल पेश की जा रही है।
पूरे सिस्टम की निगरानी, DDC से लेकर DC तक जुड़े WhatsApp ग्रुप में
प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग के लिए अलग-अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं, जिसमें उपायुक्त मनीष कुमार स्वयं जुड़े हैं और हर स्कूल की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। उत्कृष्ट कार्य करने वाले स्कूलों, शिक्षकों और कर्मचारियों को सम्मानित भी किया जा रहा है।
बोलेगा पाकुड़, बढ़ेगा पाकुड़
पाकुड़ अब केवल पिछड़ेपन की छवि से निकलकर शिक्षा की नई मिसाल बन चुका है। ‘प्रोजेक्ट परख 2.0’ जैसे नवाचारों से न सिर्फ बच्चों का भविष्य संवर रहा है, बल्कि सरकारी स्कूलों की छवि भी बदल रही है। यह कहानी सिर्फ शिक्षा की नहीं, बल्कि आशा और बदलाव की है — बोलेगा पाकुड़, तभी तो बढ़ेगा पाकुड़!



