सुदीप कुमार त्रिवेदी
किसी भी राष्ट्र व समाज के सशक्तिकरण की पहली शर्त है कि उस देश या समाज की महिला सशक्त हो । पौराणिक भारतीय समाज में अनेकों ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जिनसे यह साबित होता है कि हमारा देश इसलिए सोने की चिड़िया या विश्व गुरू कहा जाता था क्योंकि उस समय महिलाएँ सशक्त हुआ करती थी । महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह पहली शर्त है आप इसके बिना सुंदर शिक्षित व सशक्त समाज की कल्पना भी नही कर सकते हैं । उक्त बातें फाउंडेशन फाॅर अवेयरनेस काउंसिलिंग एंड एजुकेशन (FACE) के सचिव रीतु पांडे ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बाबत एक विशेष भेंट में कही । वर्ष 2002 के 14 जनवरी को वजूद में आए इस संस्था ने महिला व बालिका शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है । बकौल रीतु पांडे इस संस्था ने अपनी स्थापना काल से अब तक ग्यारह हजार बच्चों को शिक्षित करने का काम किया है जिसमें से कई बच्चियों का नामांकन नवोदय विद्यालय में हुआ एवं कई बालिका आज आशा व सहिया के तौर पर कार्य करते हुए स्वावलंबी हो चुकी हैं । फेस की सचिव रीतु पांडे ने कहा कि अपने शुरुआती दौर में में फेस के बैनर तले क्रमशः चापाडाँगा व बलियाडाँगा में केवल दो ही विद्यालय थे लेकिन कालांतर में सरकारी सहायता के माध्यम से विद्यालय की संख्या बढ़ती गई, आज फेस के बैनर तले पाकुड़ जिले के छत्तीस गाँवों में शैक्षणिक प्रकल्प चलाए जा रहें है जहाँ फिलवक्त 1890 बालिकाओं को आत्मनिर्भरता के हुनर सिखाए जा रहें हैं । रीतू पांडे ने आगे बताया कि फेस संस्था के बैनर तले महिलाओं को कानूनी जानकारी भी दी जा रही है ताकि वे और मजबूत बन सके । एक सवाल के जवाब में रीतु ने बताया कि पाकुड़ एक सिमाई जिला है लिहाजा यहाँ पर महिलाओ को और भी शिक्षित व सशक्त किए जाने की आवश्यकता है। विगत 23 वर्षों से महिला सशक्तिकरण की दिशा में कार्यरत रीतु पांडे ने संदेशखाली घटना पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसी घटनाएँ विचलित करने वाली हैं लिहाजा इन्ही सब कारणों से महिलाओं को और भी सशक्त करने की आवश्यकता है ।