आधिकारिक आदेश स्पष्ट, पर ट्रक चालक मनमानी पर उतारू।
पाकुड़: पाकुड़ पुराना डीसी मोड़ और आगे शहरकोल नया डीसी मोड़ तक सड़क तक सुबह होते ही एक अघोषित पार्किंग ज़ोन बन जाता है। नो-एंट्री का बोर्ड बस औपचारिकता भर रह गया है, क्योंकि भारी गाड़ियाँ बेखौफ सड़क किनारे कब्ज़ा जमाए रहती हैं। सबसे चिंताजनक बात यह कि बस्ती की ओर जाने वाली संकरी गलियाँ भी इन वाहनों से जाम हो जाती हैं। मोहल्ले के लोग रोज़मर्रा की दिक्कतों से जूझ रहे हैं और स्कूली बच्चों को फूँक-फूँककर सड़क पार करनी पड़ती है।परिवहन विभाग के पदाधिकारी साफ बताते हैं कि बड़ी गाड़ियों के लिए शहरकोल के अंतिम छोर—जहां बोरिंग मशीन खड़ी रहती है—उसी स्थान तक रुके रहने की आधिकारिक अनुमति है। महेशपुर की ओर जाने वाली सड़क पर भी सिर्फ समाहरणालय मोड़ के आगे तक ही भारी वाहन रुक सकते हैं। आदेश कागजों पर दर्ज हैं, बकायदा बोर्ड भी लगा हुआ है, मगर सड़क पर इनके पालन का नामोनिशान नहीं।सबसे बड़ा सवाल—आख़िर नियंत्रण कौन करे?पदाधिकारी कहते हैं कि यह जिम्मेदारी जिला मुख्यालय डीएसपी की है। लेकिन हकीकत यह है कि वर्षों से जारी यह समस्या जस की तस है। नियम टूट रहे हैं, सड़कें घिर रही हैं, और प्रशासन खामोशी ओढ़े बैठा है।शहर के लोग बताते हैं कि सुबह स्कूली बच्चों को निकालना सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। भारी वाहनों के बीच से निकलना रोज़ का खतरा बन गया है। महिलाएँ और बुजुर्ग तो कई बार घरों में ही कैद होकर रह जाते हैं।लोग पूछ रहे हैं—क्या नो-एंट्री सिर्फ कागजों में लागू है? और प्रशासन कब जागेगा?



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