राहुल दास
पाकुड़ (हिरणपुर) / झारखंड के पाकुड़ जिले का हिरणपुर प्रखंड अपने ऐतिहासिक साप्ताहिक हटिया के लिए प्रसिद्ध है, जो अंग्रेजों के जमाने से हर गुरुवार को लगती आ रही है। यह हटिया सिर्फ एक बाजार नहीं, बल्कि इलाके के हजारों परिवारों की आजीविका का प्रमुख जरिया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुकी है। गुरुवार की सुबह से ही हिरणपुर का बाजार क्षेत्र लोगों से खचाखच भर जाता है। आसपास के गांवों के अलावा बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश से भी व्यापारी अपने पशु, सामान और घरेलू उत्पाद लेकर यहाँ पहुंचते हैं। हटिया में गाय, बैल, भैंस, बकरी, मुर्गा, बतख और कबूतर तक की बिक्री होती है। साथ ही, पशुओं के चारे, बांस के बने डलिया, शूप, खटिया, चटाई और शाल के पत्ते जैसी वस्तुएँ भी यहाँ खूब बिकती हैं। हटिया की एक और खासियत यह है कि यहाँ आदिवासी जीवनशैली से जुड़ी वस्तुएँ भी बड़ी मात्रा में मिलती हैं, जैसे दातुन, बीज, मिट्टी के रंग और पारंपरिक वस्त्र। महिलाएँ मिट्टी के बर्तन और घरेलू सजावट के सामान बेचती नजर आती हैं, जबकि पुरुष खेतों में काम आने वाले औजारों की बिक्री करते हैं। हिरणपुर हटिया का स्वरूप अब पहले से काफी व्यवस्थित हो चुका है। यहाँ आने-जाने वालों के लिए बस, टेम्पो और टोटो की सुविधा उपलब्ध है। पशु व्यापार के लिए अलग जगह तय की गई है और पार्किंग की भी समुचित व्यवस्था है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हटिया सिर्फ व्यापार का स्थान नहीं, बल्कि सामाजिक मेलजोल का भी बड़ा केंद्र है। लोग यहाँ खरीद-बिक्री के साथ रिश्ते भी बनाते हैं, खबरें साझा करते हैं और स्थानीय संस्कृति को आगे बढ़ाते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजों के समय से चली आ रही यह हटिया पहले पशुओं की सबसे बड़ी मंडी मानी जाती थी, जहाँ घोड़े, ऊँट, भेड़ और गायों की बड़ी खरीद-बिक्री होती थी। आज भले ही उसका स्वरूप बदला हो, लेकिन यह बाजार अब भी पुराने अंदाज और अपनी रौनक के साथ लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है। हिरणपुर की गुरुवार हटिया आज भी झारखंड की ग्रामीण संस्कृति और जीवंत परंपरा की मिसाल है जहाँ हर सप्ताह हजारों परिवार अपनी रोजी-रोटी और उम्मीद लेकर जुटते हैं।

