सिख इतिहास में गुरु साहिबज़ादों का बलिदान अद्वितीय और प्रेरणादायक है। दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्रों ने कम उम्र में ही धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। 1705 में चमकौर के युद्ध के दौरान बड़े साहिबज़ादे साहिबज़ादा अजीत सिंह और साहिबज़ादा जुझार सिंह ने मुगल सेना से मुकाबला करते हुए वीरगति प्राप्त की। संख्या में कम होने के बावजूद दोनों ने अद्भुत साहस का परिचय दिया।
वहीं छोटे साहिबज़ादे साहिबज़ादा जोरावर सिंह और साहिबज़ादा फतेह सिंह को सरहिंद में धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद दोनों को दीवार में ज़िंदा चिनवा दिया गया। इतनी कम उम्र में दिया गया यह बलिदान इतिहास में दुर्लभ है। गुरु साहिबज़ादों की दादी माता गुजरी जी ने भी कठोर परिस्थितियों में रहते हुए बच्चों को धर्म पर अडिग रहने की सीख दी। साहिबज़ादों की शहादत का समाचार मिलने के बाद उन्होंने भी प्राण त्याग दिए। गुरु साहिबज़ादों का बलिदान आज भी समाज को अन्याय के विरुद्ध खड़े होने और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। देश भर में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और उनकी शहादत को नमन किया जाता है।





