पाकुड़। झारखंड अपनी 25वीं वर्षगांठ यानी सिल्वर जुबली मना रहा है। राज्य गठन की यह तारीख गर्व और संघर्ष दोनों की कहानी कहती है। 2 अगस्त 2000 को संसद ने बिहार पुनर्गठन विधेयक पारित किया और 15 नवंबर 2000 को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर झारखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला। आंदोलनकारियों के लम्बे संघर्ष के बाद जन्मे इस राज्य ने कई उपलब्धियाँ तो हासिल कीं, पर कई उम्मीदें अब भी अधूरी हैं। राज्य भर में रजत जयंती को लेकर उत्सव का माहौल है, लेकिन विकास की रफ्तार और बुनियादी सुविधाओं की कमी अब भी बड़ी चिंता बनी हुई है।

झारखंड की 25वीं वर्षगांठ गौरव और संघर्ष गाथा है,” कहते हैं पाकुड़ के वरिष्ठ इनकम टैक्स एडवोकेट प्रमोद कुमार सिन्हा। उनके अनुसार, राज्य खनिज संपदा, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध है, लेकिन गरीबी, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद और बेरोजगारी अब भी इसकी हकीकत हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य की हालत सुधार की मांग कर रही है। गाँवों में आज भी सड़क, बिजली और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएँ अधूरी हैं। फिर भी नई पीढ़ी उम्मीद की मशाल लेकर आगे बढ़ रही है।

ओपन स्काई स्मार्ट स्कूल के संचालक मनोज कुमार भगत कहते हैं, झारखंड ने शिक्षा, खेल और संसाधनों में अपनी पहचान बनाई है, लेकिन बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियाँ अब भी कायम हैं। यह वर्षगांठ हमें गर्व के साथ आत्ममंथन का अवसर देती है—कि हम सब मिलकर राज्य को बेहतर बनाएँ।

वरिष्ठ व्यवसायी कैलाश प्रसाद भगत का कहना है, राज्य गठन के मूल उद्देश्य अब भी अधूरे हैं। बेरोजगारी सुरसा की तरह मुँह फैलाए खड़ी है। सरकार को युवाओं को रोजगार देने पर ध्यान देना चाहिए। छात्र परीक्षा देते हैं, पर नतीजा कोर्ट में उलझ जाता है—यह स्थिति सुधारनी होगी।

चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव संजीव कुमार खत्री कहते हैं, राज्य बनने से आत्मसम्मान और अधिकार की भावना बढ़ी है। मगर शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाएँ अब भी चुनौती हैं। पाकुड़ जैसे जिलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव है। व्यापार की संभावनाएँ हैं, लेकिन निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी विकास की रफ्तार रोक रही है। सरकार को उद्योग नीति और परिवहन सुधार पर फोकस करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पाकुड़ जिला राजस्व में झारखंड में शीर्ष पर है—रेलवे को रोजाना 15 से 17 करोड़ रुपये देता है—फिर भी यहाँ से पटना या दिल्ली तक कोई सीधी ट्रेन नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर और दवाओं की भारी कमी है। सरकार अगर स्थानीय उद्योगों से युवाओं को जोड़े तो पलायन रुकेगा और झारखंड सच्चे अर्थों में आत्मनिर्भर बन सकेगा।











