राजकुमार भगत
पाकुड़। संथाल परगना स्थापना के 170 वर्ष पूरे हो चुके हैं। हर वर्ष 22 दिसंबर को मनाया जाने वाला संथाल परगना स्थापना दिवस इस ऐतिहासिक विरासत की याद दिलाता है, जिसकी नींव 1855 के संथाल हूल के बाद पड़ी थी। इसी दिन संथाली भाषा के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की खुशी में संथाली भाषा (हासा-भाषा) विजय दिवस भी मनाया जाता है। इस अवसर पर पाकुड़ जिले के महेशपुर, पाकुड़िया और अमरापाड़ा में रैलियां निकाली गईं। स्थापना दिवस के मौके पर जब पाकुड़ जिले में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति पर नजर डाली जाती है, तो तस्वीर दोहरी दिखती है—काफी हद तक सुधार, लेकिन अब भी कई बुनियादी चुनौतियां बरकरार।
शिक्षा: नामांकन बढ़ा, सुविधाएं अब भी अधूरी
जिले में समग्र शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में नामांकन बढ़ा है। स्मार्ट क्लास और डिजिटल लर्निंग की शुरुआत से पढ़ाई का स्तर बेहतर हुआ है। मिड-डे मील योजना का असर छात्रों की उपस्थिति में साफ दिख रहा है। शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की कमी, शिक्षकों के रिक्त पद, समय पर उपस्थिति न होना और शौचालय, पेयजल व बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव अब भी बड़ी चुनौती है। कई बच्चों को पढ़ाई के लिए दूर जाना पड़ता है।
स्वास्थ्य: सेवाएं बढ़ीं, संसाधन कम
पाकुड़ सदर अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाओं में सुधार हुआ है। टीकाकरण, फाइलेरिया उन्मूलन और मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मोबाइल मेडिकल यूनिट के जरिए दूरदराज़ इलाकों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का प्रयास हो रहा है। सदर अस्पताल में आधुनिक मशीनें लगी हैं और कई प्रकार के ऑपरेशन भी संभव हो पाए हैं। इसके बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों और नर्सों की भारी कमी, दवाओं की अनियमित आपूर्ति और आपातकालीन सेवाओं की सीमित उपलब्धता चिंता का विषय है। कई आदिवासी गांवों तक खराब सड़कों के कारण एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंच पाती।
जनप्रतिनिधियों और समाज के लोगों की राय
शहरकोल की पूर्व मुखिया चित्रलेखा गौड़ का कहना है कि शिक्षा और स्वास्थ्य में पहले से सुधार जरूर हुआ है, लेकिन सदर अस्पताल में डॉक्टरों की कमी आज भी बनी हुई है। व्यापारी कैलाश प्रसाद भगत मानते हैं कि उपायुक्त मनीष कुमार के प्रयासों से प्रशासनिक स्तर पर शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में ठोस पहल हुई है। शिक्षाविद मनोज कुमार भगत कहते हैं कि बुनियादी सुविधाओं की कमी को स्वीकार कर ठोस समाधान निकालना होगा, तभी वास्तविक विकास संभव है।
निष्कर्ष
170 वर्षों के सफर में संथाल परगना ने कई पड़ाव पार किए हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति हुई है, लेकिन आदिवासी और ग्रामीण इलाकों तक समान सुविधाएं पहुंचना अब भी बड़ी चुनौती है। जब तक संथाल परगना के अंतिम गांव तक स्कूल, शिक्षक, डॉक्टर और एंबुलेंस नहीं पहुंचते, तब तक विकास की तस्वीर अधूरी ही मानी जाएगी।










