बजरंग पंडित
पाकुड़। झारखंड में हेमंत सरकार की नीति अब आम जनता की समझ से बाहर होती जा रही है। एक तरफ सरकार पूरे राज्य में नशा मुक्ति अभियान पर करोड़ों खर्च कर रही है—शहरों में होर्डिंग्स, अखबारों में विज्ञापन, टीवी पर जागरूकता संदेश—तो दूसरी ओर उसी सरकार की नई शराब नीति के तहत अब गांव-गांव में शराब दुकानें खोली जा रही हैं। इस विरोधाभासी फैसले को लेकर आजसू जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने सरकार को घेरा और कहा, “हेमंत सरकार खुद नहीं समझ पा रही कि वो नशे को बढ़ावा दे रही है या खत्म करना चाह रही है। नीति साफ नहीं है, नीयत पर सवाल है।”
एक तरफ शराब के खिलाफ मुहिम, दूसरी तरफ पंचायत में दुकान—जनता परेशान
नई नीति के मुताबिक अब एक प्रखंड में नहीं, बल्कि पंचायत स्तर तक शराब दुकानों को खोला जाएगा। शराब दुकानें रात 11 बजे तक खुली रहेंगी और वहीं बैठकर शराब पीने की भी छूट दी जाएगी। जाहिर है, इससे नशे की लत और गहराएगी। आलमगीर आलम ने कहा, “सरकार अगर वाकई में नशा खत्म करना चाहती है, तो फिर शराब पर ही प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती? तंबाकू और धूम्रपान को हानिकारक बताकर रोक की बात की जाती है, लेकिन शराब के लिए रात 11 बजे तक लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं।”
“नशा मुक्ति अभियान या करोड़ों का प्रचार तंत्र?”
आजसू जिलाध्यक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार का नशा मुक्ति अभियान सिर्फ कागजों और होर्डिंग्स तक सीमित है। “अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन, सड़कों पर होर्डिंग्स और टीवी पर नारे—लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि सरकार खुद शराब को बढ़ावा दे रही है। जागरूकता के नाम पर सिर्फ करोड़ों का खेल चल रहा है।”
“नीति भी गड़बड़, नीयत भी संदिग्ध”
आलमगीर ने सरकार से सीधा सवाल किया—“अगर शराब से ही सरकार की आमदनी होनी है, तो फिर नशा मुक्त झारखंड की बात क्यों? और अगर नशा वाकई नुकसानदायक है, तो फिर पंचायतों तक शराब पहुंचाने की क्या जरूरत?” उन्होंने मांग की कि झारखंड में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए और नशा मुक्ति की बात को मजाक न बनाया जाए।