दुकान आवंटन में घोटाला! दुकानें बटी ‘औकात’ देखकर?
चहेते मालामाल, जनता बेहाल
पाकुड़: पाकुड़ नगर परिषद द्वारा बस स्टैंड परिसर में दुकान आवंटन के लिए की गई लॉटरी प्रक्रिया इन दिनों विवादों के घेरे में है। नाम भले ही लॉटरी का हो, लेकिन जिस तरह से पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया — वह किसी ‘पूर्व नियोजित सौदेबाज़ी’ से कम नहीं दिखती।
तीन नाम, तीन दुकानें और एक ही खेल
मई माह में जब बस स्टैंड की दुकानों के लिए लॉटरी आयोजित की गई, तो उसमें मात्र तीन नाम सामने आए — और संयोग ऐसा कि सभी को दुकान मिल गई। सवाल ये है कि क्या सूचना आम जनता तक पहुँची थी? क्या बेरोजगारों को आवेदन का अवसर दिया गया था?स्थानीय युवाओं और व्यापारियों का कहना है कि लॉटरी की सूचना न अखबारों में दी गई, न सार्वजनिक सूचना बोर्ड पर चिपकाई गई। ऐसे में यह “लॉटरी” नहीं, बल्कि “लॉबी” का खेल ज़्यादा लगता है।
चहेते को मिला समय पर समय
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि लॉटरी में चुना गया एक विशेष व्यक्ति — जो एक अधिकारी का खास बताया जा रहा है — उसने नियत समय (15 दिन) में दुकान के लिए राशि तक जमा नहीं की। नियम कहता है कि ऐसा होने पर आवंटन रद्द होना चाहिए, लेकिन यहाँ कृपा इतनी भारी थी कि दो महीने बाद भी दुकान उसी को थमा दी गई।
जबकि उसी दौरान दो स्थानीय युवकों ने आवेदन लेकर परिषद का रुख किया और राशि जमा करने की बात कही — लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई।
हाटपाड़ा में भी विवाद, बाहरी को दुकान!
एक और मामला हाटपाड़ा क्षेत्र से सामने आया है, जहाँ एक दुकान का आवंटन जिले से बाहर के व्यक्ति को कर दिया गया। जबकि स्थानीय बेरोजगार वर्षों से उम्मीद लगाए बैठे हैं। यह नगर परिषद की स्थानीय प्राथमिकता नीति पर सवाल उठाता है।
अधिकारी की सफाई, मगर सवाल जस का तस
नगर परिषद के अधिकारी अमरेंद्र चौधरी ने सफाई दी कि लॉटरी ‘लीगल भीम’ सॉफ्टवेयर से की गई थी, और आवेदन की अंतिम तिथि तक सिर्फ तीन लोग ही सामने आए थे।उन्होंने यह भी जोड़ा कि “राशि जमा न करने पर नोटिस दिए गए हैं और पूरी प्रक्रिया नियमानुसार चल रही है।” लेकिन सच्चाई यह है कि नियमों के नाम पर चहेतों को फायदा पहुँचाया गया, और आम युवाओं को मौका तक नहीं मिला।