खनन क्षेत्रों से निकल रहा, DMFT-CSR रूपी खजाना, लेकिन खदान किनारे गांवों में न सड़क, न पानी, न इलाज।
झारखंड का पाकुड़ जिला, जो राज्य के सबसे बड़े खनन क्षेत्रों में गिना जाता है, हर साल अरबों रुपये का राजस्व देता है। इसी के साथ अरबों-करोड़ों का DMFT (District Mineral Foundation Trust) और CSR (Corporate Social Responsibility) फंड भी निकलता है, जिसका उद्देश्य खनन प्रभावित इलाकों का विकास करना है। लेकिन हकीकत ये है कि जिस धरती से यह पैसा निकलता है, वहीं के गांव सबसे ज्यादा बदहाल हैं।
जिंदगी पटरी पर नहीं, खटिया पर जाती है अस्पताल
खनन पट्टी के गांवों में न एंबुलेंस है, न अस्पताल। कोई बीमार हो जाए तो खटिया या ठेले पर लादकर कई किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है। प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तक नहीं, और कई खदानों पर तो फर्स्ट एड किट भी नदारद। हादसा हो जाए तो भगवान भरोसे इलाज।
CSR का पैसा फाइलों में, जमीनी हकीकत में शून्य
कानून के मुताबिक खनन कंपनियों को अपनी कमाई का कम से कम 2% CSR के तहत स्थानीय विकास पर खर्च करना चाहिए। लेकिन न स्कूल बने, न सड़कें सुधरीं, न स्वास्थ्य केंद्र। CSR का नाम गांवों में सिर्फ भाषणों और रिपोर्टों में मिलता है।
सजावट पर करोड़ों, ज़रूरतें उपेक्षित
एक साल पहले एक कोल कंपनी ने शहर की सड़कों के किनारे सजावट के लिए लाखों रुपये खर्च किए थे। उद्घाटन के बाद न कंपनी लौटी, न काम बचा। दूसरी ओर, खदान से लगे गांवों में पीने के पानी के लिए एक वॉटर टैंकर तक की सुविधा नहीं है।
हर प्रखंड खनन से प्रभावित, लेकिन हालात जस के तस
जिले का कोई भी प्रखंड खनन से अछूता नहीं, चाहे पत्थर हो या कोयला। लेकिन पूरे इलाके में एक भी सुसज्जित अस्पताल या स्थायी डॉक्टर की तैनाती नहीं। DMFT और CSR का अरबों का फंड, शहरों की चमक-दमक में उड़ाया जा रहा है, जबकि खनन पट्टी के गांव अंधेरे और अभाव में हैं। यह संवादाता की निजी रिपोर्ट है।
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