पाकुड़ ब्रह्म विद्यालय सह आश्रम में पांच दिवसीय प्रवास संपन्न, सत्संग में उमड़ी श्रद्धा।
पाकुड़। श्रीश्री 108 परमहंस स्वामी सत्यानंद जी महाराज का पांच दिवसीय प्रवास शुक्रवार को ब्रह्म विद्यालय सह आश्रम में संपन्न हुआ। अंतिम दिन बड़ी संख्या में भक्तों ने सत्संग में हिस्सा लिया और स्वामी जी के उपदेशों को सुन भाव-विभोर हो उठे। स्वामी सत्यानंद जी ने कहा कि आत्मा और परमात्मा को जानने का सबसे सरल मार्ग “स्वयं को जानना” है। जब मनुष्य आत्मचिंतन करता है, तब उसे अपने भीतर छिपे दिव्य स्वरूप का अनुभव होता है। उन्होंने कहा कि बिना गुरु ज्ञान के मनुष्य का मार्ग भ्रमित हो जाता है। सद्गुरु ही जीवात्मा और परमात्मा के बीच सेतु हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा—जीवन धारण के बाद सद्गुरु की शरण में भक्ति ही मुक्ति का एकमात्र मार्ग है। स्वामी जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि अहंकार व्यक्ति के पतन का कारण बनता है। रावण विद्वान और सामर्थ्यवान होने के बावजूद भक्ति और विनम्रता के अभाव में विनाश को प्राप्त हुआ, जबकि विभीषण भक्ति के बल पर लंका के स्वामी बने। उन्होंने कहा कि राधा भाव में पूर्ण समर्पण ही प्रेम और भक्ति का सर्वोच्च रूप है, इसलिए आज भी श्रीकृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाता है।
उन्होंने कहा कि परमात्मा को पाने का सीधा मार्ग प्रेम है। गुरु के प्रति लगाव और सेवा भावना से मनुष्य मुक्त होकर परम ज्ञान को प्राप्त कर सकता है।
स्वामी सत्यानंद जी के अनुसार, संतों का स्वभाव प्रयाग जैसा पवित्र होता है, जो भक्तों को सरस्वती रूप में ब्रह्मज्ञान प्रदान कर जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
बक्सर (बिहार) से आए परमहंस स्वामी सत्यानंद जी के प्रस्थान के दौरान भक्त भावुक हो उठे। राजू पांडे, संजय पांडे, सुमित साधवानी, हितेश साधवानी, विकास साधवानी, गौतम शुक्ला, योगेंद्र पांडे, अर्जुन सिंह, वीरेंद्र पाठक, अमलान कुसुम सिंह, चंदन तिवारी, कुंदन तिवारी, सुंदरम पांडे, अरविंद सिंह, फारूक आलम, अनिल सिंह सहित कई लोग मौजूद रहे। अंत में स्वामी जी ने भक्तों से अपील करते हुए कहा— भक्ति के मार्ग पर चलिए, ब्रह्म की प्राप्ति तय है। संसार में आना-जाना चलता रहेगा, भावुक न हों, प्रेम और भक्ति को जीवन में उतारें।





