करोड़ों के राजस्व को झटका, हजारों परिवारों के सामने रोज़गार का संकट
पाकुड़ जिले के अमरापाड़ा प्रखंड में स्थित पछुवाड़ा सेंट्रल कोल माइंस ग्रामीणों की विभिन्न मांगों को लेकर लगातार पांचवें दिन भी पूरी तरह ठप पड़ी हुई है। खदान में न तो कोयले का उत्खनन हो रहा है और न ही परिवहन कार्य, जिससे क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठहर गई हैं।
माइंस के बंद रहने से जहां सरकार को प्रतिदिन करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं ट्रांसपोर्टरों, डंपर मालिकों, चालकों और उपचालकों सहित हजारों लोगों के समक्ष गंभीर रोज़गार संकट उत्पन्न हो गया है। पहले से ही ईएमआई, टैक्स और बीमा जैसी आर्थिक जिम्मेदारियों से जूझ रहे ट्रांसपोर्टरों के लिए यह बंदी कमर तोड़ने वाली साबित हो रही है। सैकड़ों डंपर खड़े हैं और उनसे जुड़े सैकड़ों परिवारों की आजीविका पर सीधा असर पड़ा है। ग्रामीणों की मांगें भले ही जायज हों, लेकिन समाधान की दिशा में अब तक ठोस पहल नहीं हो पाना चिंता का विषय है। जानकारों का मानना है कि प्रशासनिक मौजूदगी में बातचीत की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखते हुए, उद्योग को पूरी तरह बंद किए बिना भी समाधान निकाला जा सकता था। खदान के ठप रहने से न केवल औद्योगिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है। कोल कंपनियों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ उठाने वाले पक्ष जगजाहिर हैं, इसके बावजूद जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की चुप्पी और उदासीनता कई सवाल खड़े कर रही है। अब क्षेत्र की जनता की निगाहें प्रशासन और जनप्रतिनिधियों पर टिकी हैं कि वे कब सक्रिय होकर ग्रामीणों की मांगों का समाधान निकालते हैं और ठप पड़ी माइंस को फिर से चालू कराकर हजारों लोगों को राहत दिलाते हैं।








