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December 26, 2025 2:24 am

10 साल से मुआवजे के लिए भटक रहा गरीब परिवार, आदेशों के बाद भी नहीं मिला इंसाफ।

पाकुड़ के आमड़ापाड़ा प्रखंड के छोटा पहाड़पुर गांव का एक गरीब परिवार बीते दस वर्षों से अपने हक के मुआवजे के लिए दर-दर भटक रहा है। राष्ट्रीय उच्च राजपथ परियोजना के तहत गोविंदपुर–साहिबगंज सड़क निर्माण में पीड़ित गणेश मंडल की जमीन, मकान और दुकान का अधिग्रहण कर लिया गया, लेकिन बदले में मिला मुआवजा वास्तविक नुकसान से आधा भी नहीं है।
पीड़ित परिवार का कहना है कि वर्ष 2009 में किए गए आकलन में जमीन और मकान की कुल लागत 12 लाख रुपये से अधिक बताई गई थी, इसके बावजूद मुआवजे के तौर पर मात्र 5 लाख 87 हजार 742 रुपये का भुगतान किया गया। कम मुआवजे के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति पूरी तरह चरमरा गई है और वे आज कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं।

आदेशों की लंबी फेहरिस्त, न्याय अब भी अधूरा

गणेश मंडल को पिछले एक दशक में कई बार न्याय का भरोसा मिला, लेकिन हर बार मामला फाइलों में ही दबकर रह गया।तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 29 अक्टूबर 2015 को मामले पर आदेश दिया। इसके बाद 29 सितंबर 2020 को आयुक्त महोदय, 27 सितंबर 2021 को तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री तथा 17 नवंबर 2021 को उपायुक्त द्वारा पुनर्मूल्यांकन का आदेश भी जारी हुआ। इसके बावजूद आज तक समुचित मुआवजा नहीं दिया गया।चार साल बीत जाने के बाद 13 दिसंबर 2025 को माननीय नेता प्रतिपक्ष ने भी मामले में हस्तक्षेप कर आदेश दिया, लेकिन जमीन पर स्थिति जस की तस बनी हुई है।

जनता दरबार में भी नहीं मिला न्याय

न्याय की आखिरी उम्मीद लेकर पीड़ित गणेश मंडल 23 दिसंबर 2025 को पाकुड़ समाहरणालय के जनता दरबार में पहुंचे। उन्होंने उपायुक्त मनीष कुमार के समक्ष अपनी पीड़ा रखी और पूरा मुआवजा दिलाने की गुहार लगाई। लेकिन पीड़ित का आरोप है कि उन्हें सिर्फ “केस कर दीजिए” कहकर लौटा दिया गया।पीड़ित परिवार आज पूरी तरह हताश और निराश है। उनका सवाल है कि जब मुख्यमंत्री से लेकर आयुक्त और मंत्री तक आदेश दे चुके हैं, तो फिर इंसाफ क्यों नहीं मिला?
क्या गरीब का हक मांगना गुनाह है?
क्या सरकारी आदेश सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं?पीड़ित परिवार ने जिला प्रशासन और झारखंड सरकार से मांग की है कि—मामले की निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच कराई जाए,मुआवजे का पुनर्मूल्यांकन कर पूरा भुगतान किया जाए,वर्षों से चले आ रहे अन्याय का अविलंब समाधान किया जाए।अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में कब तक ठोस कदम उठाता है या फिर गरीब परिवार की लड़ाई यूं ही फाइलों में दबी रह जाएगी।

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