राजकुमार भगत
पाकुड़। भारतीय अधिवक्ता संशोधन विधायक 2025 का देशभर में विरोध हो रहा है। ऐसा इसलिए की अधिवक्ता अधिनियम प्रस्तावित संशोधन बार काउंसिल की सदस्यता को कमजोर कर सकता है। बी सी सी आई की मसौदा बार की स्वायत्तता और स्वतंत्रता की अवधारणा ही ध्वस्त करने की प्रयास है ऐसा उनका विश्वास है । प्रस्तावित कानून में कई ऐसी बातें उल्लिखित हैं जो बी सी आई अपनी स्वतंत्रता को सीधा अपमान मानता है।
इस संबंध में पाकुड़ के जाने-माने और वरिष्ठ इनकम टैक्स एडवोकेट प्रमोद कुमार सिन्हा कहते हैं कि अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025, भारतीय अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में प्रस्तावित संशोधन है, जिसका उद्देश्य कानूनी पेशे में सुधार करना है। हालांकि, इस विधेयक के कुछ प्रावधान अधिवक्ताओं, I बी सी आई की स्वायत्तता के लिए हानिकारक हो सकते हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बी सी आई) ने इस विधेयक पर आपत्ति जताई है, क्योंकि इसके अनुसार, केंद्र सरकार बी सी आई में तीन सदस्य नामांकित कर सकती है, जिससे बी सी आई की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। विधेयक में अधिवक्ताओं के लिए कड़े अनुशासनात्मक नियम प्रस्तावित हैं, जो उनके पेशेवर स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं।
इस विधेयक के तहत, ‘प्रैक्टिसिंग’ और ‘नॉन-प्रैक्टिसिंग’ अधिवक्ताओं की परिभाषाओं में परिवर्तन किया गया है। प्रैक्टिसिंग अधिवक्ता वे हैं जो अदालतों, न्यायाधिकरणों, या अन्य वैधानिक प्राधिकरणों में नियमित रूप से कानूनी कार्यवाही में भाग लेते हैं। वे अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन करते हुए, ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानूनी सलाह प्रदान करते हैं। नॉन-प्रैक्टिसिंग अधिवक्ता वे हैं जो कानूनी पेशे में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते। वे कानूनी शिक्षा, शोध, या अन्य संबंधित क्षेत्रों में कार्यरत हो सकते हैं, लेकिन अदालतों या न्यायाधिकरणों में कानूनी कार्यवाही में भाग नहीं लेते।
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 ( एडवोकेट एक्ट 1961) – धारा 35 के तहत, भारतीय बार काउंसिल (बी सी आई) और राज्य बार काउंसिल को किसी अधिवक्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है। यदि कोई ग्राहक अपने अधिवक्ता के कार्य से संतुष्ट नहीं है और उसे लगता है कि अधिवक्ता ने अपने पेशेवर कर्तव्यों का सही तरीके से पालन नहीं किया, तो वह व्यवसायिक कदाचार (Professional Misconduct) (प्रोफेशनल मिस्कॉडक)के तहत शिकायत दर्ज करा सकता है। लेकिन केवल मुकदमे के परिणाम से असंतुष्ट होने को कदाचार नहीं माना जाएगा। नए बिल में प्रोफेशनल मिसकंडक्ट की परिभाषा भी लगभग बदल दी गयी है I
संशोधन के लिए सुझाव:
- विधेयक में बी सी आई की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए प्रावधानों को संशोधित किया जाना चाहिए, ताकि केंद्र सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम हो।
- अनुशासनात्मक नियमों को इस प्रकार से तैयार किया जाना चाहिए कि वे अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता को प्रभावित न करें, बल्कि पेशेवरता को बढ़ावा दें।
बी सी आई की भूमिका:
बी सी आई का मुख्य कार्य कानूनी पेशे की स्वायत्तता और स्वतंत्रता की रक्षा करना है। विधेयक के मसौदे पर बी सी आई ने आपत्ति जताई है, क्योंकि इसके अनुसार, केंद्र सरकार बी सी आई में तीन सदस्य नामांकित कर सकती है, जिससे बी सी आई की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। इस प्रकार, बी सी आई का उद्देश्य विधेयक में आवश्यक संशोधन कर अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा करना है।