शहीदों की धरती भोगनाडीह की ओर बढ़ा श्रद्धा का कारवां, लिट्टीपाड़ा में माल्यार्पण कर दी श्रद्धांजलि
प्रशांत मंडल
लिट्टीपाड़ा (पाकुड़)। हूल क्रांति की ज्वाला एक बार फिर जीवंत हुई जब शनिवार को सिदो-कान्हू की वीरभूमि पर निकली ऐतिहासिक पदयात्रा लिट्टीपाड़ा पहुंची। गोटा भारोत सिदो कान्हू हूल बैसी के बैनर तले निकली इस यात्रा की शुरुआत दुमका के सिदो-कान्हू (पोखरा) चौक से हुई थी, जो पाडेरकोला और शहरघाटी होते हुए लिट्टीपाड़ा पहुंची।
लिट्टीपाड़ा पहुंचते ही पदयात्रियों ने सिदो-कान्हू और तिलका मांझी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वर्ष 2005 से हर साल निकलने वाली इस पदयात्रा का उद्देश्य शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो समेत हजारों आदिवासी वीरों के बलिदान को स्मरण करना है। इस दौरान आयोजित सभा में डॉ. संजय सेबास्टियन मरांडी ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम पर विस्तार से जानकारी दी। इसके बाद यात्रा का जत्था ऐतिहासिक गांव भोगनाडीह के लिए रवाना हुआ — वही धरती जहां से 1855 की हूल क्रांति की चिंगारी उठी थी। पदयात्रा में बैसी के पूर्व सचिव सुलेमान मरांडी, कोषाध्यक्ष सनातन मुर्मू, कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. गैमालिएल हांसदा, संयोजक डॉ. ए.एम. सोरेन, नयकी सोरेन, डॉ. सुशील मरांडी, पीटर हेम्ब्रम, मखोदी सोरेन, निर्मला टुडू, मनीष किस्कू और इमामी मुर्मू सहित दर्जनों कार्यकर्ता शामिल थे।
