संघर्ष की गाथा इतिहास के पन्नों में सदा अमर रहेगी : गेब्रियल मुर्मू
राजकुमार भगत
पाकुड़। झारखंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन, पाकुड़ ने झारखंड आंदोलन के प्रणेता, आदिवासी समाज के अप्रतिम योद्धा एवं झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष गेब्रियल मुर्मू ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि गुरुजी का जीवन संघर्ष, संकल्प और समर्पण की मिसाल रहा है। उनका जाना पूरे झारखंड के लिए अपूरणीय क्षति है।
उन्होंने कहा कि गुरुजी, जिनका मूल नाम शिवचरण लाल मांझी था, का जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। कम उम्र में ही पिता की हत्या ने उन्हें झकझोर दिया। पढ़ाई छोड़कर उन्होंने महाजनी शोषण के खिलाफ आदिवासी समाज को संगठित किया और यहीं से शुरू हुआ एक बड़े आंदोलनकारी का सफर। जयपाल सिंह मुंडा के निधन के बाद उन्होंने झारखंड अलग राज्य की लड़ाई को नेतृत्व दिया। ‘सोनोत संथाल समाज’ के माध्यम से समाज की कुरीतियों और महाजनी प्रथा के खिलाफ मुहिम छेड़ी। उनके ऊपर कई बार हमले हुए, लेकिन हर बार वे अडिग रहे। एक बार हमलावरों से बचने के लिए उन्होंने उफनती बराकर नदी में छलांग लगाकर अपनी जान बचाई यह घटना लोगों के बीच किंवदंती बन गई और तभी से उन्हें ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि मिली। कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने वाले गुरुजी ने 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। 1978 का ‘जंगल बचाओ आंदोलन’ उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कर गया। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और झारखंड क्षेत्रीय स्वायत्त परिषद के पहले अध्यक्ष भी रहे। अपने अंतिम समय तक वे राज्यसभा सांसद के रूप में सक्रिय रहे। हाल ही में बीमार चल रहे गुरुजी का इलाज दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में चल रहा था, जहां 4 अगस्त 2025 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से झारखंड ने एक सच्चा जननायक, संघर्षशील आदिवासी नेता और अपनी अस्मिता के प्रतीक पुरुष को खो दिया।
जिला अध्यक्ष गेब्रियल मुर्मू ने कहा, गुरुजी का जीवन प्रेरणा है। वे भले अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका विचार, संघर्ष और आदर्श सदा हमारे साथ रहेगा। उनके जीवन की गाथा इतिहास के पन्नों में अमर रहेगी।