यासिर अराफ़ात
पाकुड़ : शबे कद्र शुक्रवार की रात को शुरू हो गई. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस रात को अल्लाह की इबादत में मशहूर होते हुए इसके सारे फायदे लेने की कोशिश की.शबे क़द्र (शब-ए-क़द्र), जिसे लैलतुल क़द्र भी कहा जाता है, इस्लाम में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र रात है। यह रमज़ान महीने की सबसे खास रात मानी जाती है, जिसके बारे में कुरान और हदीस में कई फज़ीलतें (गुण और महत्व) बताई गई हैं। नीचे शबे क़द्र की कुछ प्रमुख फज़ीलतें दी जा रही हैं:
- कुरान का नुज़ूल (उतरना):
शबे क़द्र वह रात है जिसमें कुरान मज्जीद पहली बार हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) पर नाज़िल हुआ। कुरान में सूरह अल-क़द्र (97:1) में कहा गया है: “निःसंदेह हमने इसे (कुरान को) शबे क़द्र में उतारा।”
यह इस रात की सबसे बड़ी फज़ीलत है। - हज़ार महीनों से बेहतर:
इस रात की इबादत का महत्व इतना है कि यह एक हज़ार महीनों (लगभग 83 साल) की इबादत से बेहतर है। सूरह अल-क़द्र (97:3) में कहा गया:
“शबे क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।” - रहमत और बरकत की रात:
यह रात अल्लाह की रहमत, बरकत और मगफिरत (क्षमा) से भरी होती है। इस रात में फरिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं और अल्लाह के हुक्म से अमन व सलामती का पैगाम लाते हैं। सूरह अल-क़द्र (97:4-5) में है:
“उसमें फरिश्ते और रूह (जिब्रील) अपने रब के हुक्म से हर काम के लिए उतरते हैं। वह रात सलामती की होती है, सुबह होने तक।” - दुआओं की कबूलियत:
इस रात में की गई दुआएं खास तौर पर कबूल होती हैं। हज़रत आयशा (र.अ.) ने नबी (स.अ.व.) से पूछा कि अगर उन्हें शबे क़द्र नसीब हो तो क्या दुआ करें। नबी (स.अ.व.) ने फरमाया:
“कहो: अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ्वा फअफु अन्नी।”
(अर्थ: “ऐ अल्लाह! तू माफ करने वाला है और माफी को पसंद करता है, तो मुझे माफ कर दे।”) - गुनाहों की माफी:
जो शख्स इस रात को इबादत में गुज़ारे और अल्लाह से माफी मांगे, उसके पिछले गुनाह माफ हो जाते हैं। हदीस में है:
“जो शख्स शबे क़द्र में ईमान और अज्र की उम्मीद के साथ इबादत करे, उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।” (बुखारी और मुस्लिम) - अमन और सुकून:
यह रात शांति और सुकून की रात है। इस रात में इबादत करने से न सिर्फ रूहानी ताकत मिलती है, बल्कि दिल को सुकून भी हासिल होता है।
शबे क़द्र कब होती है?
शबे क़द्र की सटीक तारीख कुरान या हदीस में स्पष्ट नहीं बताई गई, लेकिन यह रमज़ान के आखिरी दस दिनों की ताक (अय्याम-ए-शफा) रातों (21, 23, 25, 27, 29) में से किसी एक में होती है। खास तौर पर 27वीं रात को इसका ज़्यादा एह्तिमाल माना जाता है।
क्या करना चाहिए?
- नमाज़ (खासकर नफ्ल और तहज्जुद) पढ़ें।
- कुरान की तिलावत करें।
- दुआएं मांगें, खासकर मगफिरत की।
- तोबा और इस्तिगफार करें।
यह रात अल्लाह की इबादत और उसकी कृपा हासिल करने का अनमोल मौका है।