राजकुमार भगत
पाकुड़। नवरात्रि के सप्तम दिवस पर सोमवार को मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा अर्चना विधि-विधान एवं वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ जिलेभर के मंदिरों, पूजा पंडालों और घरों में संपन्न हुई। मान्यता है कि मां कालरात्रि की उपासना से समस्त बुरी शक्तियों का नाश होता है और साधक अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होकर सुख-समृद्धि प्राप्त करता है। नवरात्रि के आठवें दिन महा अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है। इस अवसर पर मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना की जाती है। अत्यंत सौम्य और सुंदर वर्ण वाली महागौरी भगवान शंकर की अर्धांगिनी मानी जाती हैं और वे चार भुजाओं सहित वृषभ (बैल) पर सवार होकर भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। भक्तजन मां महागौरी को नारियल की मिठाई, हलवा और काले चने का भोग अर्पित करेंगे। सफेद पुष्प, कुमकुम, दूब, अक्षत, धूप-दीप और सफेद चंदन से की गई पूजा को अत्यंत फलदायी माना गया है।
कन्या पूजन का महत्व।
अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि छोटी कन्याएं स्वयं देवी का ही स्वरूप होती हैं। श्रद्धालु उन्हें सम्मानपूर्वक पूजन और भोजन कराते हैं। इसे केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि करुणा, सेवा और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता यह भी है कि कन्या पूजन से न केवल देवी प्रसन्न होती हैं, बल्कि नवग्रह भी संतुलित हो जाते हैं।
संधि पूजा का शुभ मुहूर्त।
अष्टमी और नवमी के संधिकाल में होने वाली संधि पूजा को नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना गया है। यह कालखंड मात्र 24 मिनट का होता है। इस बार संधि पूजा का शुभ मुहूर्त आज शाम 5:42 बजे से 6:30 बजे तक निर्धारित है। संध्या काल में की जाने वाली यह आराधना बिना नवरात्रि पूजन को अधूरा माना जाता है।