नगर परिषद की टोल टैक्स वसूली पर गरमाया माहौल।
पाकुड़: झारखंड उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश के बावजूद पाकुड़ नगर परिषद द्वारा व्यावसायिक वाहनों से जबरन टोल टैक्स की वसूली जारी रहना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था को खुली चुनौती देने जैसा है। चेंबर ऑफ कॉमर्स, पाकुड़ ने इस मुद्दे को लेकर उपायुक्त मनीष कुमार एवं नगर पालिका पदाधिकारी को पत्र सौंपते हुए नगर परिषद द्वारा वसूले जा रहे इस ‘टोल टैक्स’ को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की है। चेंबर के सचिव संजय कुमार खत्री ने पत्र में जोर देकर कहा है कि यह टैक्स न केवल आर्थिक बोझ बढ़ा रहा है, बल्कि यह पूरी तरह संवैधानिक और न्यायिक मर्यादाओं के खिलाफ है।
हाईकोर्ट ने पहले ही दे दिया है आदेश, फिर भी जारी वसूली क्यों?
18 दिसंबर 2024 को झारखंड उच्च न्यायालय ने गिरिडीह नगर निगम के संदर्भ में साफ आदेश दिया था कि नगर निगम या परिषद को किसी भी प्रकार की कमर्शियल व्हीकल एंट्री फीस वसूलने का कोई अधिकार नहीं है। यह आदेश जो स्पष्ट रूप से कहता है — कोई कर विधिक प्राधिकार के बिना नहीं वसूला जा सकता। इस आदेश की वैधानिकता पूरे राज्य के लिए समान रूप से लागू होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश, पाकुड़ नगर परिषद इसे दरकिनार करते हुए अब भी धड़ल्ले से वसूली कर रही है — जिससे न सिर्फ न्याय का मज़ाक बन रहा है, बल्कि आमजन पर अनावश्यक आर्थिक बोझ भी लादा जा रहा है।
बढ़ते मालभाड़े से महंगाई की मार
चैंबर ऑफ कॉमर्स का कहना है कि इस टैक्स के चलते माल ढुलाई महंगी हो गई है, जिसका सीधा असर बाजार में बिकने वाले हर सामान की कीमत पर पड़ा है। महंगाई की मार झेल रही जनता अब इस जबरन टैक्स से त्रस्त हो चुकी है। चेंबर ऑफ कॉमर्स ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन शीघ्र कोई निर्णय नहीं लेता, तो आंदोलन की राह तय है— जब हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है, तो वसूली कौन-से कानून के तहत हो रही है? और अगर अदालत के आदेशों को ही नगर परिषदें अनदेखा करने लगें, तो फिर जनता कहाँ न्याय की उम्मीद करे?
जनता पूछ रही है — “कानून बड़ा या नगर परिषद की मर्जी?”
अब गेंद जिला प्रशासन के पाले में है। यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा सिर्फ़ टोल टैक्स तक सीमित नहीं रहेगा — बल्कि न्यायिक आदेश की अनदेखी और लोकतंत्र के अपमान का बड़ा सवाल बन जाएगा।