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June 25, 2025 2:29 am

महुआ की महक से गुलजार है लिट्टीपाड़ा के जंगल: आदिवासियों के लिए जीवन रेखा है महुआ, सीजन में बदलती है जिंदगी

प्रशांत मंडल

लिट्टीपाड़ा( पाकुड़)प्रखंड क्षेत्र के पश्चिमी भाग में वनोपज के लिए मशहूर है। यहां के जंगलों में बेशकीमती वनोपज मिलते हैं. महुआ भी उन्हीं वनोपज में से एक है, जिसका संग्रहण करके आदिवासी ने अपनी आजीविका चलाते हैं. इन दिनों लिट्टीपाड़ा का जंगल महुआ की खुशबू से गमक रहा है.जंगल में रहने वाले आदिवासी ग्रामीण महुआ इकट्ठा करने के लिए सूरज की पहली किरण फूटने से पहले ही जंगलों के अंदर चले जाते हैं,जहां वो महुआ पेड़ के नीचे गिरे फलों को इकट्ठा करते हैं.जंगली इलाका होने के कारण इस क्षेत्र में कई महुआ के पेड़ हैं,जो साल भर में इतनी वनोपज दे देते हैं,जिनसे आदिवासियों का ठीकठाक गुजारा हो जाता है.

महुआ बना आजीविका का जरिया : जंगल के बीच में होने वाला महुआ आदिवासियों के लिए जीवन की गाड़ी चलाने का ईंधन है. महुआ अपनी महक से पूरे जंगल में खुशबू बिखेरता है,साथ ही साथ इसकी खुशबू आदिवासियों को ये संदेश देती है कि उनके जीवन में भी अब खुशहाली आने वाली है.आदिवासी महुआ के पेड़ का सम्मान अपने माता पिता के जैसे ही करते हैं.जिस तरह से एक पालक अपने संतान को पालने के लिए हर कष्ट झेलता है,ठीक उसी तरह महुआ भी विपरित काल में भी आदिवासियों को ये भरोसा दिलाता है कि जब तक मैं यहां हूं आपकी थाली में निवाले की कोई कमी नहीं होगी!
ग्रामीणों ने बताया कि हम लोग पूरा परिवार मिलकर महुआ के सीजन में लगभग पांच क्विंटल महुआ चुन लेते हैं. महुआ को हम लोग उबालकर खाते हैं. लाटा बनाकर भी खाते हैं. महुआ को सूखाकर मार्केट में बेचते भी हैं. महुआ का उपयोग देसी शराब बनाने में होता है. महुआ के बाद डोरी का फल आता है जिसका तेल निकालकर घर में पुड़ी पकवान बनाकर खाते हैं!आदिवासी परिवारों के बीच उनकी जीवन शैली और आदिवासी संस्कृति में महुआ का प्रमुख स्थान है. महुआ का सीजन आदिवासियों के लिए उत्सव जैसा है!

महुआ संवारता है कई जिंदगी

महुआ बेचने पर आदिवासियों को अच्छी आमदनी होती है.बाजार भाव की बात करें तो आदिवासी वनोपज संग्रहण केंद्रों में जाकर महुआ को बेचते हैं।

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