पाकुड़: कभी ‘प्रगतिशील पाकुड़’ का सपना दिखाने वाले नगर परिषद की कार्यप्रणाली आज शहरवासियों के लिए पहेली बन गई है। विकास के नाम पर कागज़ों में चमकता शहर, हकीकत में कचरे के ढेर और बदबूदार नालों के बीच कराह रहा है। प्रशासनिक दावों और ज़मीन की तस्वीर में अंतर इतना बड़ा हो चुका है कि इसे अनदेखा करना अब मुश्किल है।सुबह का वक्त आमतौर पर ताजगी का होता है, लेकिन पाकुड़ में हालात उलट हैं। लोग मॉर्निंग वॉक पर निकलते हैं तो ताजी हवा की बजाय काला धुआं और पसरी हुई गंदगी स्वागत करती है। होटलों से उठता प्रदूषण और सड़कों पर बहता नाला शहर की पहचान पर ग्रहण लगा रहा है।
गली–मोहल्लों से लेकर मुख्य बाजार तक गंदगी का साम्राज्य
श्यामनगर दुर्गा मंदिर के आगे का इलाका हो, कब्रिस्तान के पास का मोड़, गुरुद्वारा गली, वार्ड 3 या व्यस्त बस स्टैंड—हर तरफ एक ही हालात। नालों का पानी सड़क पर फैलकर बदबू का अड्डा बन चुका है। ऐसी जगहें भी देखी गईं जहाँ कचरा पिछले कई हफ्तों से अछूता पड़ा है। कुछ स्थानों पर हाल यह है कि मनुष्य ही नहीं, जानवर भी नज़दीक आने से कतराते हैं।

बस स्टैंड: यात्रियों के लिए यातना का केंद्र
पाकुड़ बस स्टैंड की बदहाली शहर की सफाई व्यवस्था की असल पोल खोल देती है। कूड़ेदान ओवरफ्लो, ज़मीन पर जमती गंदगी, हवा में उड़ते कचरे और सैलूनों का कटा बाल यात्रियों की थाली तक पहुँच जाता है। स्थिति को और विकट बनाते हैं कुछ अराजक तत्व, जो खुले में पेशाब कर बस स्टैंड को बदबूघर में बदल रहे हैं। रोज गुजरने वाले सैकड़ों यात्रियों के लिए यह दृश्य असहनीय बन गया है।

नगरपालिका पर उठते सवाल, जनता में गहराता अविश्वास
शहरवासियों के आरोप गंभीर हैं। उनका कहना है कि नगरपालिका की प्राथमिकताएँ बदल चुकी हैं—सफाई नहीं, बल्कि टेंडर मैनेजमेंट, दुकान आवंटन और अन्य ‘मैनजमेंट’ गतिविधियाँ मुख्य काम बन गई हैं। सफाई कर्मियों की तैनाती अनियमित है और शहर में मासिक प्रतीकात्मक सफाई मात्र दिखावा बनकर रह गई है।
यह विडंबना ही है कि ‘प्रगतिशील पाकुड़’ का बैनर मुख्य मार्गों और अधिकारियों के आवासों को चमकाता है, जबकि बाकी शहर बदहाली की मार झेल रहा है।

जनता की साफ मांग—सफाई नहीं तो ‘प्रगतिशील’ का दावा बंद करें
लोगों ने नगर परिषद को स्पष्ट संदेश दिया है—या तो स्थिति सुधारें या प्रगतिशीलता के दावे बंद करें। शहर को तत्काल सफाई अभियान की जरूरत है। नालों की नियमित सफाई, बस स्टैंड की दैनिक स्वच्छता और मोहल्लों में कचरा संग्रहण की प्रभावी व्यवस्था लागू करना अब अनिवार्य हो गया है। पाकुड़ की जनता अब कार्रवाई चाहती है, आश्वासन नहीं। शहर की सेहत और लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी दांव पर है—इसे अब और नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं।












