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परमजीत कुमार/देवघर.- कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ का पहला अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य उपासना का यह अनुपम लोक पर्व पूरे उत्तर भारत सहित देश के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है. इसे पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक शुद्धता के साथ मनाया जाता है. यह व्रत काफी कठीन होता है. इसके लिए बेहद संयम से रहना पड़ता है. आखिर छठ व्रत को इतना कठिन क्यों माना जाता है. आइये जानते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य से…
क्या कहते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने लोकल 18 को बताया कि भारत में जितने भी पर्व हैं वह दो दिनों तक चलते हैं. इसमें पहला दिन संजत दूसरा दिन व्रत का होता है, लेकिन छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है. छठ व्रत करने के लिए अनेक कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है. आमतौर पर लोग 24 घंटे निर्जला व्रत करते हैं. लेकिन छठ महापर्व में 36 घंटे लगातार व्रती निर्जला व्रत में रहती है. बिहार झारखंड में व्रती को परवेती भी कहा जाता है. इसके साथ ही व्रती खुद ही कार्य करती है. नहाय खाय के साथ सुबह के अर्ध्यतक पूर्ण निष्ठा के साथ व्रत का पालन करती है. इसलिए छठ महापर्व का व्रत सबसे कठिन माना जाता है.
36 घंटे निर्जला उपवास
छठ महापर्व के दौरान व्रती को 36 घंटे निर्जला उपवास पर रहना पड़ता है. इसके साथ ही सोने के लिए बिस्तर भी त्यागना पड़ता है. छठ व्रत करने वाली महिलाओं को अलग कमरे में जमीन पर कंबल बिछा कर सोना पड़ता है. इसके साथ ही छठ पूजा में व्रती बिना सिलाई किए हुए कपड़े पहनते हैं. सबसे कठिन यह होता है कि ठंड के दिनों में अर्घ देने तक व्रती नदी या तालाब मे स्नान कर सूर्य भगवान के सामने हाथ जोड़ पानी में खड़ी रहती है.
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FIRST PUBLISHED : November 16, 2023, 18:04 IST
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