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November 21, 2025 12:45 pm

76 साल की आज़ादी, पर हालात जस के तस—भलिए बरमसिया डेरी टोला की मौन चीख।

विकास के नारे धरे रह गए, भलिए बरमसिया में आज भी सड़क, इलाज और राशन सपना

विकास के दावों के बीच 3 किलोमीटर खटिया पर जिंदगी ढोते लोग।

पाकुड़ जिले के महेशपुर प्रखंड के चांडालमारा पंचायत का भलिए बरमसिया डेरी टोला, यह वह गांव है जिसे देखकर लगता है कि समय यहां दशकों पहले ही रुक गया हो। चारों ओर बिखरी गरीबी, कच्चे रास्ते, अधूरे वादे और टूटी उम्मीदें—हर कदम पर इस टोले की मजबूरी को साफ बयां करती हैं।

30 घर, पर दस्तावेजों में सिर्फ आधा गांव

टोले में करीब 30 परिवार रहते हैं, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में जैसे यह गांव पूरी तरह मौजूद ही नहीं। सिर्फ 15 परिवारों के पास राशन कार्ड है, बाकी लोग वर्षों से केवल इंतजार कर रहे हैं—पर उम्मीद नहीं बदलती, ना ही हालात।

प्रसव पीड़ा और 3 किलोमीटर की खटिया यात्रा।

यहां किसी गर्भवती महिला की प्रसव पीड़ा शुरू होते ही परिवार की धड़कनें बढ़ जाती हैं। न एम्बुलेंस आती है और न कोई सरकारी वाहन। मजबूर परिवार पुराने खटिया पर मरीज को लादकर 3 किलोमीटर पैदल चलकर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं। यह दृश्य आज भी इस बात का ज़िंदा सबूत है कि विकास की चमक अभी भी इस गांव तक नहीं पहुँच पाई है।

सरकारी योजनाएँ पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं।

पूरे टोले में सिर्फ 5 घरों को किसी सरकारी योजना का लाभ मिला है। बाकी परिवार आज भी वही सवाल पूछ रहे हैं—
क्या हम इस देश के नागरिक नहीं? हमारी आवाज़ आखिर कब सुनी जाएगी?

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जॉब कार्ड तक नहीं, पर पेट की आग बुझानी है।

गांव के अधिकांश परिवारों का जॉब कार्ड तक नहीं बना। लोग रोजगार के लिए भटकते हैं, फाइलें सरकारी दफ्तरों में धूल फांकती रहती हैं और उनकी जिंदगी अपनी जगह ठहरी हुई है।

सरकार नहीं, गरीबों ने खुद बना लिया तालाब।

सबसे प्रेरक लेकिन दर्द से भरी तस्वीर—
यहां के लोगों ने हर घर से 3000 रुपये इकट्ठा करके खुद तालाब का निर्माण कर लिया। जहां काम सरकार को करना था, वहां गरीब लोग अपनी मजदूरी से पैसे काटकर विकास करने को मजबूर हैं। यह आत्मनिर्भरता नहीं, लाचार लोगों की मजबूरी का बयान है।

बीमारी यानी आफत।

टोले में न अस्पताल है, न दवाइयों की दुकान, न सड़क। किसी मरीज की हालत बिगड़ जाए तो वही 3 किलोमीटर की खटिया यात्रा ही एकमात्र रास्ता है। कई बार परिवार को डर रहता है कि मरीज कहीं रास्ते में ही दम न तोड़ दे।

यह गांव एक ‘मौन चीख’ है।

भलिए बरमसिया डेरी टोला सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि विकास की असल तस्वीर है— एक ऐसी तस्वीर, जो बताती है कि आज़ादी के 76 साल बाद भी इस देश में ऐसे गांव हैं जहां लोग अब भी बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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