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परमजीत कुमार/देवघर.छठ महापर्व को सबसे कठिन पर्व यूंहीनहीं कहा जाता है.इसमें कई कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है. इसमें व्रति 36 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं. वहीं कई व्रति दंड देते हुए घाट तक जाती हैं. दंड देकर घर से घाट तक जाना काफी कठिन साधना है. लेकिन लोगों में मन में यह सवाल आता है कि आखिर कुछ भक्त इस तरह दंड देकर घाट तक क्यों जाते हैं. इस संबंध में लोकल 18 ने देवघर के ज्योतिषी से खास बातचीत की…
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने कहा कि छठ व्रत का सबसे कठिन साधना जमीन पर लेटकरघर से छठघाट तक जाना होता है. इससे दंडी या दण्डी प्रणाम भी कहते हैं.छठ पूजा को मन्नतका पर्व भी कहा जाता है. जो भीमाता छठी और सूर्य भगवान की श्रद्धा पूर्वक आराधना करते हैं उनकी मनोकामनायें जरूर पूर्ण होती हैं . सूर्य भगवान के 12 नाम है. वहीं पहले के समय में जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती थी. वह सूर्य भगवान के 12 नाम को एक एक जाप कर जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई बराबर निशान देते थे और फिर उठकर सूर्य भगवान को प्रणाम करते थे और यह प्रक्रिया कुल 13 बार करते थे. लेकिन धीरे-धीरे यहपरंपरा बदली और लोग घर से छठ घाट तक दंड देकर जाने लगे.
क्या है दंड देने की प्रक्रिया
छठ पर संतान प्राप्ति और बीमारे से छुटकारा को लेकर मन्नत मांगी जाती है. जिसकी मन्नत पूरी होती है वे दंड देते हैं.दंड देने वाले पुरुष या महिलाओं के एक हाथ में लकड़ी होता है जो आम का होता है. फिर वह जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई का लकड़ी सें एक निशान लगाते हैं. फिर उसे निशान पर खड़े को सूर्य भगवान को प्रणाम करते हैं. यह प्रक्रिया छठ घर से नदी घाट तक चलती है. वही दंड प्रणाम ढलते सूर्य को अर्घ देने के समय और उगते सूर्य को अर्घ देने के समय किया जाता है. महिलाओं और पुरुष के द्वारा दंड प्रणाम के बाद ही लोग डाला लेकर घाट तक जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 16, 2023, 22:08 IST
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