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बड़ा रोचक बात बा. कुछ पुरनिया लोग बता गइल बा कि अखंड भारत पर राज करे वाला सम्राट अशोक के शासनकाल (269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व ) का घरी भी भोजपुरी रहे. त ई श्रुति परंपरा के बात ह. श्रुति परंपरा के कौनो लिखित दस्तावेज ना होला. सुनल- सुनावल बात़ के पीढ़ी दर पीढ़ी कहल- सुनल जाला. रउरा जानते होखब कि सम्राट अशोक मौर्य वंश के शासक रहले. अखंड भारत माने आज के बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार से लेके पच्छिम में अफगानिस्तान आ ईरान तक ले. सम्राट अशोक धार्मिक रूप से सहिष्णु रहले आ बौद्ध धर्म के अनुयायी रहले. उनकर जनम पाटलिपुत्र में भइल रहे. ऊ सम्राट बिंदुसार के बेटा रहले. अब रउरा कहब कि सम्राट अशोक के समय त प्राकृत आ ब्राह्मी लिपि के चलन में रहे. उनकर स्थापित कइल स्तूप आ स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि में लिखल बा.
सारनाथ में अशोक स्तंभ पर त साफे ब्राह्मी लिपि में लिखल बा. त सरकार, जनश्रुति के अनुसार ओहघरी भोजपुरी भाषा लिखित से ज्यादा बोलचाल में उपस्थित रहे. एह घरी भाषा विद्वान कहता लोग कि प्राकृत आ हिंदी के संबंध प्रत्यक्ष जुड़ि रहल बा. त कई लोग भोजपुरी के हिंदी के अपभ्रंश कहेला. ब्राह्मी लिपि चित्रात्मक भाषा ह. अन्य भाषा नियर प्राकृत आ ब्राह्मी लिपि के भी रूपांतरण भइल आ ऊ मागधी, पालि, अर्ध मागधी आ भोजपुरी में रूपांतरित भइल. त पुरनिया लोगन के बात पर बिसवास कइल जा सकेला कि सम्राट अशोक के समय भोजपुरी भाषा के अस्तित्व रहे. विद्वान लोग कहता कि प्राकृत आ संस्कृत में साम्य बा. समानता बा. त भोजपुरी के प्राचीन अस्तित्व पर कइसे प्रश्नचिह्न लाग सकेला?
लिपि विकास के चार चरण मानल गइल बा. एक- चित्र लिपि, दू- भाव संकेत लिपि, तीन- वर्णात्मक लिपि, चार- अक्षरात्मक लिपि. त ब्राह्मी लिपि भी एही क्रम से गुजरते हुए भोजपुरी के जनम दिहलस. ई काम सम्राट अशोक के समय में ही हो गइल रहे. भोजपुरी आपन विकास यात्रा ओही घरी से सुरू क देले रहे. मजा के बात ई बा कि कुछ लोग कहे लागल बा कि देवनागरी के प्रभाव अब कई गो भाषा पर परि चुकल बा. त ब्राह्मी लिपि से पैदा भइल देवनागरी भाषा जीवंत होके जदि अपना बहिन भाषा पर प्रभाव डालि रहल बिया त कौनो अचरज के बात ना होखे के चाहीं. अब रउरा पूछि सकेनी कि देवनागरी कइसे बरियार हो गइल आ ब्राह्मी के लोप हो गइल. त एकर जबाब ईहे बा कि देवनागरी में लचीलापन बा, ग्राह्यता बा. ओकरा में दोसरो भाषा के शब्द अपना लेबे के क्षमता बा. भोजपुरी में आपन शब्द दोसरा भाषा में बांटे के उदारता भी बा. भोजपुरी के व्यापकता के एगो छोट उदाहरन लीं.
भोजपुरी में एतना उदारता आ व्यापकता बा कि बांग्ला से लेके मैथिली तक के शब्द ओकरा में मिल जाई. माने आदान- प्रदान के जतना सुघर परंपरा बाड़ी सन, ऊ भोजपुरी भाषा में मिल जाई. जइसे- कपड़ा पसारल. धोअल कपड़ा सूखे खातिर भोजपुरी में “पसारल” जाला त मैथिली में भी “पसारल” जाला. भोजपुरी में “थपरी” बजावल जाला त मैथिली में भी “थपरी” बजावल जाला. त भोजपुरी के हृदय बड़ा विशाल बा. अनंत बा. एही से एकरा के समृद्ध भाषा कहल जाला. भोजपुरी के क्षमता अपरंपार बा. कौनो बात के रउरा प्रभावशाली ढंग से कइसे कहि सकेनी, ई भोजपुरी रउरा के बता दी. जइसे- “बेला फूल के गंध समूचा मोहल्ला के गुंजार क देले रहुए.” कौनो फूल के गंध पूरा मोहल्ला में ना फइल सकेला. बाकिर बातचीत में गंध के प्रभाव बतावे खातिर ई उदाहरण दे सकेनीं. रउरा के केहू ना कहि सकेला कि रउरा अति करतानी. भोजपुरी के दिल बड़ा उदार आ आसमान नियर विशाल ह.
कुछ विद्वान लोग कहता कि ब्राह्मी भाषा, उत्तर भारत में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से विकसित होखे सुरू भइल. ब्राह्मी वर्णमाला से आधुनिक भाषा के 40 गो भा ओकरो से बेसी लिपियन के जनम भइल. त हो सकेला भोजपुरियो ब्राह्मी से जनम लेले होखे. काहें से कि ब्राह्मी लिपि आ नागरी लिपि के संबंध बहुत पुरान कहल जाला. रोचक बात ई बा कि ब्राह्मी लिपि के लगभग लोप हो गइल बाकिर ओकरा से निकलल भासा भोजपुरी बरियार होखत चलि गइल. एगो मान्यता बा कि नागरी, ब्राह्मी लिपि के वंशज ह. त एह मान्यता के अनुसार भी भोजपुरी प्राचीन भाषा ह, मानल जा सकेला. प्राचीन मान्यता ह कि ब्राह्मी लिपि ब्रह्मा जी के बनावल ह. त भोजपुरी, जदि ब्राह्मी के वंशज ह त ऊहो देव भाषा भइल. विद्वान लोग ईहो कहले बा कि देवनागरी, ब्राह्मी लिपि के सबसे व्यापक, विकसित आ वैज्ञानिक लिपि ह. एतना कुल रोचक तथ्य मिलत जातारे सन कि लागता कि पुरनिया लोग अंदाज पर ना, बड़ा सोच- समझ के कहले होई कि भोजपुरी सम्राट अशोक के समय में बोलल जात रहे.
भोजपुरी के क्रमशः विकास दू हजार साल से पहिले के मानल जा सकेला. काहें से कि भोजपुरी त विकसित होत रहे, बाकिर ओकर साहित्य बहुत बाद में सामने आइल. एही से कुछ लोगन के मन में शंका हो जाला कि भोजपुरी एतना पुरान बा? त सरकार, भाषा पुरान बिया, ओकर साहित्य अपेक्षाकृत बाद में प्रकाशित भइल. हो सकेला कि पुराना समय में भोजपुरी साहित्य लिखाइल होखे आ प्रकाशन के अभाव में ऊ लुप्त हो गइल भा नष्ट हो गइल. त भोजपुरी के प्राचीनता पर अब पुनर्शोध के समय आ गइल बा. काहें से कि अब अपना लालित्य, सौंदर्य आ ओज के कारन भोजपुरी अब बार- बार ध्यान खींच रहल बिया.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
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Tags: Article in Bhojpuri, Literature
FIRST PUBLISHED : November 16, 2023, 13:38 IST
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