राजकुमार भगत
पाकुड़। नवरात्रि के पहले दिन सोमवार को श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना पूरे विधि-विधान और मंत्रोच्चारण के साथ की। घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री को धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, अश्वगंधा, मधु, नवेद्य और गंगाजल अर्पित किया गया। इस अवसर पर माता को विशेष रूप से खीर का भोग लगाया गया।
मां शैलपुत्री को शक्ति, समर्पण और समृद्धि की प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि उनकी पूजा से घर-परिवार में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। भक्तों को साहस, संतोष और नई ऊर्जा की प्राप्ति होती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री और मां पार्वती का अवतार मानी जाती हैं। उनका स्वरूप अत्यंत दिव्य और मनोहारी है। बैल पर सवार माता शैलपुत्री एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिवस मंगलवार 23 सितंबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाएगी।
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