राहुल दास
पाकुड़। सरकार गरीबों और दिव्यांगों के उत्थान के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। योजनाएं भी चल रही हैं ताकि हर जरूरतमंद तक लाभ पहुंच सके। लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग कहानी कहती है। पाकुड़ प्रखंड के तोड़ाई पंचायत के खजूरडांगा गांव के रहने वाले जियाउल मोमिन पिछले 12 साल से दिव्यांग ट्राईसाइकिल और आवास योजना का इंतजार कर रहे हैं। जियाउल मोमिन शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं और बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पास न ट्राईसाइकिल है, न पक्का घर।
जियाउल कहते हैं, सरकार से हर महीने सिर्फ एक हजार रुपये की पेंशन मिलती है, उससे क्या होगा? ट्राईसाइकिल नहीं होने से कहीं आना-जाना मुश्किल हो जाता है। कई बार आवेदन किया, लेकिन अब तक कोई लाभ नहीं मिला।
उन्होंने बताया कि अब तक न अबुवा आवास योजना का लाभ मिला है और न प्रधानमंत्री आवास योजना का। कई बार पंचायत और प्रखंड स्तर पर गुहार लगाने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि जियाउल जैसे कई लोग हैं जिन्हें अब तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका है। सवाल उठता है कि जब सरकार योजनाओं के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है, तो फिर ऐसे जरूरतमंद आज भी उपेक्षित क्यों हैं?













