बनीज शेख और नफीसुल आलम की संस्था ने दी सैकड़ों जिंदगियों को नई सांस
सतनाम सिंह
जब बात किसी की जान बचाने की हो और सामने कोई रिश्तेदार नहीं हो—तब कुछ लोग ऐसे होते हैं जो रिश्तों से नहीं, इंसानियत से जुड़ते हैं। इंसानियत फाउंडेशन और लाइफ सेवियर्स जैसे संगठन आज इसी रिश्ते की मिसाल बन चुके हैं। इन संस्थाओं के सचिव बनीज शेख और नफीसुल आलम को रक्तदान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए हाल ही में राज्य की राजधानी रांची में सम्मानित किया गया। यह सम्मान सिर्फ दो व्यक्तियों का नहीं, पाकुड़ जैसे सीमावर्ती जिले की सोच, संवेदना और समर्पण का प्रतीक है।
जिनके खून ने दी दूसरों को नई जिंदगी
अब तक इन दोनों संस्थाओं के जरिए सैकड़ों ज़िंदगियों को नया जीवनदान मिला है। रक्त की एक-एक बूँद ने उन मरीजों को वापस जिंदगी की ओर लौटाया, जिनका परिवार उम्मीद खो चुका था। और यही वजह है कि आज इन संस्थाओं का नाम सिर्फ झारखंड ही नहीं, देश के कई राज्यों में श्रद्धा से लिया जा रहा है।
ज़रूरतमंदों का बना सहारा
ये संस्थाएँ केवल रक्तदान तक सीमित नहीं हैं। गरीबों की मदद, जरूरतमंदों के बीच राहत, और समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के साथ खड़े रहना—यह इनका रोज़ का काम है। कभी किसी को खून चाहिए, कभी दवाई तो कभी किसी की बेटी की शादी में मदद—हर मौके पर ये लोग चुपचाप खड़े मिलते हैं।
युवाओं में जगा सेवा का भाव
इन संगठनों की प्रेरणा से पाकुड़ के युवाओं में अब लोकसेवा की चेतना जाग उठी है। आज दर्जनों युवा हर वक्त रक्तदाता बनने को तैयार रहते हैं। ये वो युवा हैं, जिन्होंने सोशल मीडिया के बजाय समाज सेवा को अपना स्टेटस बनाया है।
सम्मान से बड़ा है इनका योगदान
हालाँकि, रांची में मिला सम्मान इन संस्थाओं के कार्यों का सिर्फ एक छोटा-सा प्रतीक है। जिनकी वजह से किसी माँ की गोद सूनी नहीं हुई, किसी पत्नी ने विधवा होने से बचा लिया, और किसी बच्चे ने अनाथ होने से— उनकी पहचान सिर्फ सम्मान से नहीं, दुआओं और आशीर्वाद से बनती है।
“पैसा नहीं, जज़्बा बड़ा होना चाहिए”
इन संगठनों के कार्यों को देखकर एक बात साबित होती है—अगर दिल बड़ा हो और नीयत साफ़, तो समाज बदलना कोई मुश्किल नहीं। बनीज शेख और नफीसुल आलम जैसे लोग हमारे बीच हैं, यही भरोसा दिलाता है कि इंसानियत अभी ज़िंदा है।