बच्चों के संग, अभिभावक के द्वार अभियान ने बदली तस्वीर
डांगापाड़ा, हिरणपुर जब सुदूर टोलों तक पहुँचना कठिन हो, संसाधन सीमित हों और बच्चों की पढ़ाई बीच रास्ते छूटने लगे—ऐसे हालात में उत्क्रमित उच्च विद्यालय डांगापाड़ा ने शिक्षा को घर-घर पहुँचाने का बीड़ा उठाया। विद्यालय की पहल “बच्चों के संग, अभिभावक के द्वार” अब भरोसे और संवाद का सशक्त माध्यम बनती दिख रही है। अभियान की दूसरी कड़ी में शनिवार को विद्यालय की पूरी टीम दराजमठ और धोपाहाड़ी जैसे दूरस्थ इलाकों में पहुँची। शिक्षकों ने अभिभावकों से सीधे संवाद कर बच्चों की पढ़ाई, नियमित उपस्थिति और भविष्य को लेकर खुलकर चर्चा की। मेट्रिक के बाद पढ़ाई छूटने की प्रवृत्ति, दिहाड़ी मजदूरी का दबाव और घरेलू जिम्मेदारियों जैसे मुद्दों पर संवेदनशील बातचीत हुई। शिक्षकों ने स्पष्ट किया कि विद्यालय केवल परीक्षा पास कराने की जगह नहीं, बल्कि बच्चों के जीवन को दिशा देने का माध्यम है। कार्यक्रम में ग्राम के सम्मानित सदस्य पास्टर जी की मौजूदगी ने अभियान को सामाजिक समर्थन दिया। उन्होंने इसे सिर्फ शैक्षणिक नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करने वाला प्रयास बताते हुए प्रभारी प्रधानाध्यापक और विद्यालय परिवार की सराहना की। गौरतलब है कि इससे एक दिन पहले मोयरा टोला और हरिजन टोला में भी विद्यालय टीम ने 80–90 अभिभावकों से संवाद किया था, जहाँ भावनात्मक माहौल में कई अभिभावकों ने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया। दराजमठ और धोपाहाड़ी में भी अभिभावकों ने पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि पहली बार लगा कि स्कूल सिर्फ बच्चों का नहीं, पूरे परिवार का है।
अंत में प्रभारी प्रधानाध्यापक आनन्द कुमार भगत ने कहा कि शिक्षा तभी मजबूत होगी, जब शिक्षक, अभिभावक और समाज मिलकर इसे साझा जिम्मेदारी मानेंगे। उन्होंने अभिभावकों से बच्चों की नियमित उपस्थिति, नैतिक मार्गदर्शन और पढ़ाई के लिए सकारात्मक वातावरण देने की अपील की। विद्यालय परिवार ने इस जनसंपर्क अभियान को आगे भी निरंतर और व्यापक रूप से जारी रखने का संकल्प दोहराया।







