पाकुड़: झारखंड विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद पाकुड़ में भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच चुनावी फंड के दुरुपयोग को लेकर विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता कमल कृष्ण भगत ने पूर्व जिला अध्यक्ष पांचू सिंह और उनके समर्थकों पर आरोप लगाया कि पाकुड़ विधानसभा सीट से एनडीए प्रत्याशी अजहर इस्लाम द्वारा चुनावी खर्च के लिए दिए गए लगभग 21 लाख रुपये गबन कर लिए गए और कार्यकर्ताओं में वितरित नहीं किए गए।
क्या है मामला?
कमल भगत ने दावा किया कि यह राशि विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रलोभन देने और चुनावी प्रबंधन के लिए दी गई थी, लेकिन पांचू सिंह और अन्य ने इसे अपने पास रख लिया। इस मामले को लेकर भगत ने एनडीए के व्हाट्सएप ग्रुप में आरोप लगाए और कार्यकर्ताओं से विरोध करने की बात कही।
घटना की शुरुआत
सूत्रों के अनुसार, यह विवाद तब बढ़ा जब बड़हरवा के लोलो पैलेस में एक गुप्त बैठक के दौरान चुनाव प्रबंधन के खर्च का विवरण सामने आया। इसमें एक पर्ची पर पांचू सिंह की लिखावट होने का दावा किया गया। बैठक के बाद पांचू सिंह अपने समर्थकों के साथ देर रात कमल भगत के घर पहुंचे।
मारपीट और हिंसा
पांचू सिंह के समर्थकों का आरोप है कि कमल भगत, उनके भाई और भतीजे ने मिलकर उनकी जमकर पिटाई की। वहीं, कमल भगत ने कहा कि पांचू सिंह अपने समर्थकों के साथ हथियार लेकर उनके घर पहुंचे और उनके भतीजे आनंद प्रियदर्शी पर हमला किया। इस हमले में प्रियदर्शी की हथेली पर गंभीर चोट आई, जिसके लिए चार टांके लगे।
इस हिंसा में दोनों पक्षों के कुल तीन लोग घायल हुए। घायलों को बड़हरवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया और बाद में बेहतर इलाज के लिए अन्यत्र रेफर कर दिया गया।
सीसीटीवी फुटेज बना सबूत
कमल भगत ने घटना स्थल पर लगे सीसीटीवी फुटेज को सबूत के तौर पर पेश करने की बात कही है, जिसमें झगड़े का पूरा घटनाक्रम रिकॉर्ड हुआ है। वहीं, दूसरी ओर पांचू सिंह ने इन आरोपों को झूठा बताते हुए कहा कि उन्हें जानबूझकर बदनाम किया जा रहा है।
विवाद का कारण
इस विवाद की जड़ पाकुड़ विधानसभा चुनाव में आजसू के उम्मीदवार अजहर इस्लाम के पक्ष में मतदाताओं को प्रलोभन देने के लिए दी गई लगभग 21 लाख रुपये की राशि का कथित दुरुपयोग है। आरोप है कि यह धन कार्यकर्ताओं में वितरित नहीं किया गया, जिससे असंतोष फैला और अंततः विवाद हिंसक हो गया।
पार्टी के लिए चुनौती
यह घटना न केवल भाजपा की अंदरूनी कलह को उजागर करती है, बल्कि झारखंड में पार्टी की चुनावी रणनीति और प्रबंधन पर भी सवाल खड़े करती है। ऐसे समय में जब चुनाव के बाद पार्टी को एकजुट रहने की जरूरत है, यह विवाद संगठन के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।