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December 26, 2025 7:05 pm

दुसरो को नीचा दिखाने से कार्य मे नहीं मिलती है सफलता – आचार्य पीयूष

भागवत कथा के तीसरे दिन प्रस्तुत की गई झांकी।

राहुल दास

हिरणपुर (पाकुड़): दुसरो को नीचा दिखाने के लिए की गई कार्य कभी सफल नही होती। दुसरो को सम्मान व आदरभाव देना जरूरी है। दराजमाठ में आयोजित भागवत कथा सह ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन वृंदावन के आचार्य पीयूष कौशिक जी महाराज ने अपने प्रवचन में उक्त बातें कही। भागवत कथा में काफी संख्या में महिला पुरुष उपस्थित थे। कथा वाचक ने भोलेनाथ व दक्ष प्रजापति की पुत्री सती मैया की विवाह को उदृत करते हुए कहा कि देवताओ में सबसे बड़े दक्ष प्रजापति ने अपने दरबार मे सभा बुलाई थी , जिसमे सभी देवतायें उपस्थित थे। जहां भगवान शिव भी थे। पर अहंकारवश दक्ष प्रजापति ने शिव की अवहेलना किया। इसके बाद भगवान शिव हंस के निकल गए। इसके कुछ दिनों बाद दक्ष प्रजापति ने यज्ञ आहूत किया ,पर भगवान शिव को नही बुलाया। इससे आहत सती मैया पति की बातों को नजरअंदाज कर मैके पहुंची। जहां उन्हें दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। पर सहते रही। जब पति की अवहेलना हुई तो यज्ञ कुंड में जलकर देह त्याग दिया। कथा वाचक ने आगे कहा कि सुकदेव से परीक्षित राजा से जिज्ञासा करने पर बताया कि मृत्यु की अवधि सात दिनों की है।पूरा संसार काल के गाल में समाया हुआ है। व्यक्ति चाहे तो थोड़े समय मे ही कल्याण कर सकते है। हृदय में भक्तिभाव रहने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। मात्र माला घुमाने से भजन नही होती। क्योंकि माला घुमाने के दौरान दूसरे ओर रहता है। संगम में स्नान के समय व्यापार की चिंता करोगे तो भक्ति कैसे मिलेगी। एकाग्र मन से किये गए सभी कार्य सफल होता है। भागवत कथा श्रवण करने के बाद इसे एकांत में मनन कर आत्मसात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान की लीला भी अपरम्पार है। जो भक्तों की हर सुख दुख में भागीदार बना हुआ है। कर्म का फल स्वंय को ही भोगना होगा। सत कर्म करोगे तो मोक्ष की प्राप्ति होगी। मन को शांतचित्त रखकर भगवान की स्तुति करना चाहिए। आत्मा कभी मरती नही है। मृत व्यक्ति की शरीर को जलाकर , गाड़कर व गंगा में प्रवाह कर दिया जाता है। जो समाप्त हो जाता है। कथा के दौरान मनमोहक झांकी की भी प्रस्तुति की गई। इस दौरान आयोजक कमिटी के एतवारी साहा , मोहनलाल भंगत , नन्दलाल यादव आदि उपस्थित थे।

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