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March 17, 2025 11:28 am

माघी पूर्णिमा के आते ही फगुआ गीत और चैता की हुई शुरुआत

एस भगत

खदान पाड़ा स्थित महारुद्र यज्ञ के समापन पर देर शाम तक चली चैता कार्यक्रम । फगुआ गीत और चैता में कहलगांव से आए गायन कलाकार और अपने गायन से दर्शकों का मन मोह लिया मानो ब्रज की होली यही हो रही हो गोपियों का ठिठोलापन फागुन के बयार पलाश के फूलों के साथ बह रहे हो । माघी पूर्णिमा के आते ही होली का रंग उत्सव लोगों पर चढ़ने लगा । फागुन महीना का प्रवेश करते ही चैता और ब्रज की होली के गाने पर लोग झूमने शुरू कर दिए । फगुआ होली की दस्तक पलाश के पेड़ों पर दिखने वाले लाल लाल फूल लोगों को बताते हैं कि फागुन करीब आ चुका है और लोग एक दूसरे को रंग लगाने की तैयारी में जुट जाएं । पहले लोग प्राकृतिक रंगों की होली खेला करते थे और अब बाजारों में कृत्रिम रंगों की होली खेलते हैं पलाश के फूल उगते ही लोग उसे समेट कर रंग बनाने के लिए रख लिया करते थे चैत्र और वैशाख को वसंत ऋतु माह माना गया है, परंतु इसके आने की आहट माघ पंचमी से शुरू हो जाती है और फाल्गुन पूर्णिमा तक आते-आते सब कुछ इतना भर जाता है कि छलकने लगता है। प्रकृति अपने सुंदरतम रूप में होती है और जब सौंदर्य चारों ओर पसरा हो तो शिव के माध्यम से सत्य को जानने की उत्कंठा बढ़ जाती है। शिवरात्रि के दिन से लोग होली के रंग में रंग जाते हैं । मंजरियों का रस, फूलों का सौरभ, भ्रमरों का प्रेम तो मलय समीर का धैर्य छलकने लगता है। बच्चों में उल्लास, युवाओं में प्रेम तो बूढ़ों में सुधियां छलकने लगती हैं। चैता समेत फगुआ गाने की शुरुआत हो जाती है ।

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