रामकथा में सती मईया की भावप्रद प्रस्तुति
राहुल दास
हिरणपुर (पाकुड़): सद्गुणों से ही चरित्र का निर्माण होता है , इसके लिए वर्षो लग जाता है। मंगलवार देरशाम हिरणपुर स्थित बजरंगबली मंदिर कमिटी द्वारा आयोजित रामकथा में कथावाचक आचार्य रविशंकर ठाकुर ने कहा। आचार्य ने कहा कि किसी भी व्यक्ति में सारे गुण एक साथ नही आता।सद्गुण धीरे धीरे आता है। पारस मणि का एक स्वभाव है , लोहे को स्पर्श कराने से सोना बन जाता है , पर सत्संग से व्यक्ति कुंदन हो जाता है। मां सती ने श्रीराम की परीक्षा लेनी चाही थी। तब भगवान शंकर ने पूछा था कि किस विधि से परीक्षा लोगी। भगवान की परीक्षा लेना ही अक्षम्य अपराध है। सच का कोई रूप नही , पर झूठ को लेकर हजार बहाना बनाना पड़ता है। जिस व्यक्ति को परिवार , समाज से नकारता है , उन्हें स्वंय पर विश्लेषण करना चाहिए। सती मा की परीक्षा को लेकर भगवान शंकर ने सचेत करने पर अपराध बोध हो गया। पति की धर्मसंगत आदेश का पालन करना पत्नी का धर्म है। उन्होंने कहा कि गुरु , पिता -माता व पति के आदेश पर विचार नही करना चाहिए। जो पुत्र अपने मात पिता का अवज्ञा करता है , वह कुपुत्र कहलाता है। हर व्यक्ति को संकल्प मन ही मन लेना चाहिए। पर प्रतिज्ञा कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह द्वारा लिए गए सरह लेना चाहिए। जिससे कि दूसरों की उपकार हो। उन्होंने आगे कहा कि सत्य सर्वदा जीवंत है। इसे हमेशा से अपनाना चाहिए। पति द्वारा पत्नी को त्यागे जाने में सबसे ज्यादा कष्टकर हो जाता है। जहां पति को आदर करना चाहिए , वही पत्नी को पति द्वारा सम्मान दिया जाना आवश्यक है। पति की सम्मान की सर्वोपरी है। सती मईया पति की इच्छा के विपरीत अपने मायके दक्ष राज के पास जाते है। जहां उन्हें काफी लज्जित होना पड़ा। बिन बुलाए पिता , मित्र , गुरु व पति के घर जा सकते है। पर जानबूझकर आपको निमंत्रण न दे तो जाना व्यर्थ है। लोग जब एकांत में चिंतन मनन करता है तो सहज स्वभाव में आ जाता है। उसका सहज व्यक्तित्व परिलक्षित होता है। जैसा चिंतन करोगे , वैसे भाव प्रदर्शित होगी। रामकथा में आचार्य द्वारा मनमोहक भजन की भी प्रस्तुति की गई , जिससे उपस्थित श्रोता भावविभोर हो उठे। इस कार्यक्रम में आयोजक कमिटी के सभी सदस्य उपस्थित थे।

