बजरंग पंडित
पाकुड़: पाकुड़ जिला आदिवासी बहुल जिला में से एक है। यहां पर कुल 9 थाना है। लेकिन दुःख की बात है कि इसमें एक भी आदिवासी को थाना प्रभारी नहीं बनाया गया है। जबकि सुयोग्य कारण क्या है मुझे नहीं पता लेकिन मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय भाषा का समझ रखने वाले पदाधिकारी को दायित्व देने का प्रावधान है ताकि वह उनकी समास्या आसानी से समझ सकें।उम्मीद जरूर करता हूं कि ये सभी थाना प्रभारी स्थानीय भाषा का समझ रखते होंगे।आपको बता दें कि पाकुड़ जिला के कुल 9 थाना में संजीव कुमार झा- थाना प्रभारी मुफ्फसिल, नवीन कुमार थाना हिरणपुर, सनी सुप्रभात- थाना महेशपुर, अमित कुमार सिंह- थाना प्रभारी पाकुड़िया, रंजन कुमार सिंह- थाना प्रभारी लिट्टीपाड़ा, धनुषधारी रवि- एससी/एसटी थाना प्रभारी पाकुड़, सुखदेव कुमार साहू- थाना प्रभारी मालपहाड़ी ओपी, विवेक कुमार- थाना प्रभारी रद्दीपुर ओपी, सर्वदेव राय थाना प्रभारी सिमलौंग ओपी बनाया गया है, इनमें से कोई भी आदिवासी हैं।कहने का तो सरकार आबोवाक् दिसोम आबोवाक् राज के नीति और सिद्धांत पर चलती है लेकिन महज़ यह छलावा मात्र है। केवल मुसीबत के समय आदिवासी शब्द का याद आता है बाकी जब सिस्टम में बैठने का बारी आती है या गुड़ मलाई खाने का समय आता है तब वहां पर आदिवासी गुम हो जाते हैं। वहां पर केवल गैर आदिवासी का नाम सामने आता है, जो पाकुड़ जिला में मिशाल बनाकर के आया है। वर्तमान समय में झामुमो के द्वारा गांव-गांव में आदिवासी न्याय यात्रा निकाला जा रहा है और उनके कार्यकर्ता के द्वारा लोगों के सामने रोना रोया जा रहा हैं कि भाजपा ने साजिश के तहत पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को फंसाकर जेल भेजा है।एक आदिवासी मुख्यमंत्री के साथ न्याय नहीं किया है इसलिए आदिवासियों को न्याय मिलना चाहिए और सहानुभूति बटोरने के लिए गली-गली भटक रहे हैं, लेकिन उनकी सरकार में आदिवासियों को कितना हक और न्याय मिल रहा है यह किसी से छिपा नहीं है।झारखंड मुक्ति मोर्चा का मुख्य वोटर आदिवासी है और उन्हें अधिकार मिलने के नाम पर सत्ता तक पहुंचाया है लेकिन यहां का आदिवासी “बाबू भैया और हेमंत भैया” के आगे नतमस्तक हैं। वर्तमान सरकार “जिसकी लाठी उसकी भैंस” के राह पर चल रही है। यहां के आदिवासी न पैसे वाले हैं और न ही जी हुजूर करना जानते हैं इसलिए आज योग्य होने के बावजूद भी किसी भी विभाग में प्रभारी नहीं बन पाते हैं, क्योंकि उसके लिए चढ़ावा देना पड़ता है जो आदिवासियों के पास नहीं है। हमारे बहुत सारे दोस्त हैं जो विभिन्न सरकारी विभाग में कार्यरत हैं लेकिन प्रभारी नहीं बन पाने का मलाल होता है और कभी कभी दर्द भरी दास्तां भी सुनाया करते हैं लेकिन यहां तो खेल सिक्का का है।हाल ही में बहुत सारे प्रखंड विकास पदाधिकारी को अनुमंडल पदाधिकारी का पदोन्नति मिला है,उसमें से बहुत सारे आदिवासी प्रखंड विकास पदाधिकारी भी शामिल है लेकिन किसी दुख की बात का है कि पदोन्नति मिलने के बाद भी आज उनको अनुमंडल पदाधिकारी नहीं बनाया गया है। आज भी ये लोग महज बीडीओ के रूप में आज काम कर रहे हैं।अब भी आदिवासी समाज को आबोवाक् दिसोम आबोवाक् राज में जल, जंगल, जमीन का नारा देने वाले सरकार से यह उम्मीद कर रही है कि उनको सरकार के मुख्य ओहदे पर काम करने का दायित्व मिलेगा या फिर माफिया पंकज मिश्रा जैसे चंगु मंगू और गंगू का पिछलग्गू बनकर रहना पड़ेगा।
