7 टैंक से बदली तक़दीर”
पाकुड़िया (पाकुड़)। कभी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करने वाली दुलाली सोरेन आज अपने गांव सालपानी में आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुकी हैं। गृहिणी से उद्यमी बनने तक का उनका सफर न सिर्फ़ संघर्ष भरा था, बल्कि सैकड़ों ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा भी है। जिले के पाकुड़िया प्रखंड के छोटे से गांव सालपानी की रहने वाली दुलाली, पहले मामूली घरेलू आय पर अपने परिवार का गुजर-बसर करती थीं। लेकिन हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहते। एक दिन उन्हें पता चला प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) के बारे में, जो मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है।
यही से शुरू हुआ बदलाव का सफर।
बायोफ्लॉक ने बदली तस्वीर
दुलाली ने 2021-22 में जिला मत्स्य कार्यालय, पाकुड़ में बायोफ्लॉक तकनीक के तहत 7 टैंक निर्माण योजना के लिए आवेदन दिया। कुल लागत थी 7.5 लाख रुपये। महिला लाभार्थी होने के नाते उन्हें 60% यानी 4.5 लाख रुपये का अनुदान मिला। जैसे ही टैंक बने, उन्होंने मत्स्य पालन शुरू किया। शुरुआत में चुनौतियां आईं, लेकिन दुलाली ने हार नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि आज हर साल वह करीब 1400 किलो मछली का उत्पादन कर रही हैं और 2.10 लाख रुपये की सालाना कमाई कर रही हैं। यह उनके लिए सिर्फ आमदनी नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की भी पहचान है।
गांव में बनीं मिसाल
आज दुलाली अपने गांव की महिलाओं के लिए रोल मॉडल हैं। लोग उनके पास सलाह लेने आते हैं, ट्रेनिंग मांगते हैं। बायोफ्लॉक मछली पालन अब गांव में एक नया विकल्प बन चुका है और स्थानीय स्तर पर रोजगार के भी द्वार खुलने लगे हैं।
महिलाओं के लिए संदेश
दुलाली कहती हैं – “सरकार की योजना तो ज़रिया है, असली ताकत हमारी मेहनत है। अगर सच्ची लगन हो, तो कोई भी महिला कुछ भी कर सकती है।” जहां पहले दुलाली केवल एक गृहिणी थीं, अब वे एक सफल महिला उद्यमी हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना उनके लिए सिर्फ एक योजना नहीं, एक ज़िंदगी बदलने वाला अवसर बन गई।