सतनाम सिंह
पाकुड़। संताल परगना स्थापना दिवस के अवसर पर 22 दिसंबर 2024 को के.के.एम. कॉलेज, पाकुड़ में आदिवासी छात्राओं ने उत्साहपूर्वक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस दौरान सिदो-कान्हु मुर्मू और चांद-भैरो मुर्मू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनके साहस और योगदान को याद किया गया। 30 जून 1855 को साहेबगंज के भोगनाडीह से शुरू हुए इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन और महाजन प्रथा के खिलाफ आदिवासी समाज की एकजुटता और संघर्ष की मिसाल पेश की। इस विद्रोह में सिदो-कान्हु मुर्मू जैसे महान नेताओं के नेतृत्व में 30,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया। इस आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी भी उल्लेखनीय रही, जहां फूलो-झानो ने नेतृत्व किया।इस क्रांति के परिणामस्वरूप 22 दिसंबर 1855 को बिहार के भागलपुर और पश्चिम बंगाल के बीरभूम के कुछ हिस्सों को मिलाकर संताल परगना जिला का निर्माण हुआ। बाद में यह प्रमंडल बना और आदिवासी समाज के हितों को सुरक्षित रखने के लिए संताल परगना काश्तकारी अधिनियम जैसे विशेष कानून बनाए गए। संताल परगना काश्तकारी अधिनियम ने आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री पर रोक लगाई और उनकी सभ्यता व संस्कृति को संरक्षित करने का मार्ग प्रशस्त किया। आज भी आदिवासी समाज सिदो-कान्हु, चांद-भैरो और फूलो-झानो को भगवान के रूप में पूजते हैं। मौके पर छात्र नेता जयसेन सोरेन, कमल मुर्मू, होपना सोरेन, स्टीफन मुर्मू, दानिएल किस्कू, संदीप, अमित सहित कई छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। सभी ने इस ऐतिहासिक दिवस को स्मरण करते हुए संकल्प लिया कि आदिवासी संस्कृति और इतिहास को संरक्षित करने के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।
