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October 16, 2025 1:31 am

मिट्टी के दीपक में बसता है पंचतत्व और सुख-समृद्धि का संदेश

राजकुमार भगत

पाकुड़। सनातन धर्म में पूजा-पाठ और त्योहारों का महत्व दीपावली और दुर्गा पूजा जैसे अवसरों पर सबसे ज्यादा नजर आता है। ऐसे समय पर मिट्टी के दीपक जलाना सदियों से चली आ रही परंपरा है। शास्त्रों में इसे तेज, शौर्य, पराक्रम, सुख-समृद्धि और शांति का प्रतीक माना गया है। मिट्टी के दीपक सिर्फ पर्यावरण के लिए ही अनुकूल नहीं हैं, बल्कि यह पांच तत्वों – जल, वायु, अग्नि, आकाश और भूमि – का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। इसलिए इन्हें अति शुभ और भाग्यवर्धक माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक और तेल को शनि ग्रह का प्रतीक माना गया है। मिट्टी और तेल के संयोजन से दीपक जलाने पर शनि और मंगल का अनुकूल प्रभाव रहता है। इसके फलस्वरूप जीवन में तरक्की, सुख-सौभाग्य, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा भी सदियों पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनका स्वागत मिट्टी के दीपक जलाकर किया था। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दीपावली पर घरों की चौखट, मुंडेर, मंदिर और लक्ष्मी जी के स्थान पर घी के मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए, जिससे महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

कुम्हार भी दीपावली के लिए उत्साहित

रंग-बिरंगे विद्युत बल्बों के दौर में भी मिट्टी के दीपक अपनी खास पहचान बनाए हुए हैं। दीपक बनाने वाले कुम्हार और कलाकारों की मेहनत से ही पूजा-पाठ शुद्ध और सात्विक बनता है। पहले पारंपरिक चाक पर दीपक बनते थे, अब इलेक्ट्रॉनिक चाक से उन्हें तेजी से बनाने की सुविधा मिली है, जिससे उनका व्यवसाय और जीवन सरल हुआ है।

मिट्टी के दीपक का प्रयोग सभी को करना चाहिए।

कुम्हारों की मेहनत और खुशी हमें भी आनंद देती है। आचार्य विश्व रंजन कहते हैं कि दीपावली का यह पर्व सिर्फ बाहरी प्रकाश नहीं, बल्कि अपने मन के भीतर के प्रकाश को भी जगाने का अवसर है।
मिट्टी के दीपक में बसता है पंचतत्व, धार्मिकता और समाज की खुशहाली का संदेश।

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